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मैं कोई लेखक नहीं हु लेकिन मेरे अंदर कीड़ा मचला है अब ..शब्दों को पिरोना संजोना नहीं अत्ता है .. लेकिंग जो बातें हैं कही अनकही बस लिख देना है

गर्मी भीषण हो रही है दिल्ली में मगर बचपना याद दिला रही है..झारखण्ड में एक जगह है , साहिबगंज . वह एक तरफ झरने वाली पहाड़ी है दूसरी तरफ उत्तर वाहिनी गंगा ..चिलचिलाती धुप में कभी झरने में नहा के सुकून लेते थे केकड़ो को पकड़ पकड़ कर हमलोग उसके शल्य चिकित्सा किया करते थे . रोज़ स्कूल से भाग के गंगा नहाने जाते थे सारा दिन मस्ती शाम को आंखे लाल होती थी . माँ से बोलते थे पसीना चला गया है आँखों में ..गंगा के मुहाने पे तरबूज की खेती होती थी . वहां चोकीदार भी थे इसिस्लिये झुक के फल फल तोड़ नहीं सकते थे .. इतने शातिर से सaरे दोस्त की लात मार के तरबूज तोडते थे और पैरो में फुटबाल की तरह तरबूज फसा के सीधी चल चलते हुए ले जाते थे और सीधे गंगा में लुढका देते थे ... फुटबाल में थोडा प्रोत्साहन होता और मौका मिलता था तोह एक दो लोग शायद मोहन बगान या मोहम्मडन स्पोर्टिंग में पहुच ही जाते |
माँ नाश्ते में दूध रोटी और आम देती थी सुबह सुबह घर पे ....रात को या तडके सुबह जाब आंधी आती थी गर्मियोंमे तोह खुशी होती थी दिल कहता था बहुत सारे आम गिरेहोंगे पेड़ से काश वहां जाने का मौका मिले थोड़े आम (छोटे कच्चे अंबिया को टिकोले बोलते हैं झारखण्ड बिहार की तरफ )या टिकोले चुन सकू .. सरकारी स्कूल में पढते थे मास्टरजी पसीने में एक छात्र से पंखे झाल्वातेय हुए सोते थे , और हम दोस्त लोग टोपाज शेविंग ब्लेड के आधे टुकडे से कच्चे आम छील छील के खाते थे .|.....

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Comment by Rash Bihari Ravi on June 3, 2010 at 2:53pm
bahut khubsurat rachna,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 2, 2010 at 1:44pm
ममता की छांव में, हम आपने गाँव में
बगिया में तोड़े वो आम बड़े कच्चे थे
तब जब हम बच्चे थे......

चांदनी की रातों में, दादी के पहलू में
सुनते थे किस्से जो, लगते वो सच्चे थे
तब जब हम बच्चे थे...........

गैया का दूध दुहे, नन्हे से हांथो से
प्यारे बछडे उसके, तब लगते अच्छे थे
तब जब हम बच्चे थे...........

आकार वो बैठ गयी, घर में बिन बात के
बकबक काकी को तब, देते हम गच्चे थे
तब जब हम बच्चे थे...........

प्रातः उठकर बाबा, खेतों की ओर चलें
चाहे कोई ऋतु हो, धुन के वो पक्के थे
तब जब हम बच्चे थे..........

शहरों की चकाचौंध, मुझसे ना सही जाये
बेहतर था गाँव, वहां हम इससे अच्छे थे
तब जब हम बच्चे थे.........


राणा प्रताप सिंह..........29 May 2010
Comment by Ajit kumar sinha on June 1, 2010 at 7:39pm
Accha laga bachpan ki kuch yade taza ho gayi ghar se jhoot bol kar gangaji nahane jana. aandhi chalne par dimag me sirf ek baat ki kash abhi wahan aam ke bagicha me hote to tikola milta bahut sa. are bahut si baat yaad aa gayi yaar
Comment by Biresh kumar on June 1, 2010 at 5:43pm
congrats!!!!!
this 200th post of our obo family!!!!!!!!!!!!!

aur ye lazawab cleanly elaborated post!!!!!!
ek hi baat bolunga is pr..
kiya baat..............
kiya baat.............
kiya baaat.....................
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on June 1, 2010 at 2:08pm
bachpan ke suhaane dino ka bahut hi badhiya tarah se chitran kiya hai aapne......

bahut bahut badhiya...
Comment by baban pandey on June 1, 2010 at 2:03pm
बस लिखते जाओ मेरे दोस्त ,अपना लिखा अपने को अच्चा नहीं लगता .....जिस प्रकार अपनी बीबी अच्छी नहीं लगती . दुसरे की बीबी अच्छी लगती है ,...ठीक उसी तरह समझो ....
Comment by Anand Vats on June 1, 2010 at 2:01pm
आपका हार्दिक अभिवादन मुझे प्रोत्सहित करने के लिए..मैं थोडा शैतान किस्म का बच्चा हुआ करता था बचपन में ... मन में द्वन्द है सच कैसे लिखा पाउँगा .. लेकिन कोशिश जरूर करूँगा
Comment by Kanchan Pandey on June 1, 2010 at 1:42pm
yadey bachapan key, bahut hi yaad aati hai bachapan, kash wo pal dubara aa pata, bahut badhiya chitran bachpan ka kiya hai aapney, thanks
Comment by Admin on June 1, 2010 at 1:35pm
रोज़ स्कूल से भाग के गंगा नहाने जाते थे सारा दिन मस्ती शाम को आंखे लाल होती थी . माँ से बोलते थे पसीना चला गया है आँखों में ..गंगा के मुहाने पे तरबूज की खेती होती थी . वहां चोकीदार भी थे इसिस्लिये झुक के फल फल तोड़ नहीं सकते थे .. इतने शातिर से सaरे दोस्त की लात मार के तरबूज तोडते थे और पैरो में फुटबाल की तरह तरबूज फसा के सीधी चल चलते हुए ले जाते थे और सीधे गंगा में लुढका देते थे ...

वाह आनंद जी, वाकई आपने मुझे अपने बचपन की याद दिला दिया है, एक पूरा सिनेमा दिमाग मे घूम गया, थोडा इधर उधर कर कुछ ऐसा ही सबके बचपन मे गुजरा होगा, आप की पोस्ट पढ़ कर एक मन मे विचार आया की एक फोरम मे चर्चा शुरू किया जाय जिसमे सभी सदस्य अपने बचपन की यादो को एक दूसरो से शेअर करेंगे , यदि आप सब की राय बनेगी तो ऐसा किया जा सकता है, बहुत बढ़िया ये पोस्ट है आनंद जी, आगे भी इस तरह की पोस्ट का इन्तजार रहेगा,

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