For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीवन में कितने चक्रव्यूह

जीवन में कितने चक्रव्यूह

पर घबराना कैसा  

पग-पग मिले सघन अरण्य

खूंखार  एक  सिंह अदम्य

तुझे मिटाने  की खातिर

खेले  दांव  बहु  जघन्य

अहो  प्रतिद्वंदी  ऐसा

पर घबराना कैसा   

 

करके तराश  दन्त नक्श

जाना तू उसके समक्ष

नेस्तनाबूत करने को   

उसी हुनर में होना दक्ष

कर वार उसी पर वैसा  

पर घबराना कैसा 

शत्रु  हावी हो या पस्त

तू विजयी हो या परास्त

होंसलों की डोरी पकड़   

विदग्ध बन, हो आश्वस्त  

होने दो  जो हो जैसा

पर घबराना कैसा

 

कुटिल जाल रचे कुतंत्र  

मिलें श्रान्ति और षड्यंत्र

मंजिल है कहाँ आसान

उद्वेग से न हो परतंत्र

चाहे चक्रव्यूह जैसा

पर घबराना कैसा

**************

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 713

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 31, 2014 at 9:14pm

आ० कुंती जी, आपकी सराहना से मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ.हार्दिक आभार आपका  

Comment by coontee mukerji on January 31, 2014 at 9:04pm

 

कुटिल जाल रचे कुतंत्र  

मिलें श्रान्ति और षड्यंत्र

मंजिल है कहाँ आसान

उद्वेग से न हो परतंत्र

चाहे चक्रव्यूह जैसा

पर घबराना कैसा

**************........बहुत प्रेरणास्प्रद  रचना.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 31, 2014 at 10:01am

जीतेन्द्र गीत जी प्रस्तुति पर आपकी सराहना पूर्ण अनुमोदन पाकर हर्षित हूँ बहुत- बहुत शुक्रिया. 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 31, 2014 at 9:53am

जीवन में किसी न किसी मोड़ पर इन्सान को चक्रव्यूह का सामना करना ही पड़ता है, चाहे वह अपनों या दूसरों के द्वारा रचा गया हो, आपकी रचना सकारात्मक रूप से डटकर मुकाबला करने का सन्देश देती है, बहुत बहुत बधाई आदरणीया राजेश जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 31, 2014 at 9:48am

प्रिय प्राची प्रस्तुति की विषयवस्तु आपको पसंद आई हार्दिक आभार आपका. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 30, 2014 at 10:45pm

मानव कई-कई स्तर पर कई बार चक्रव्यूह में फंसा छटपटाता है... और जब ऐसे चक्रव्यूह किसी अपने द्वारा ही रचे गए हों तब उनसे बाहर निकलने का हौसला भी पस्त हो जाता है... एक निडर, दृढ़, स्पष्ट दृष्टि और सूझ ही ऐसे किसी चक्रव्यूह को भेद सकती है...

रचना की विषयवस्तु बहुत पसंद आयी...लेकिन शिल्प के स्तर पर अभिव्यक्ति कुछ कमज़ोर लगी.

हृदय से शुभकामनाएं प्रेषित हैं.

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 30, 2014 at 8:22pm

रचना पर आपका  अनुमोदन पाकर उत्साहित हूँ बहुत- बहुत शुक्रिया ब्रजेश जी. 

Comment by बृजेश नीरज on January 30, 2014 at 8:13pm

बहुत ही सुन्दर सन्देश देती खूबसूरत रचना! आपको हार्दिक बधाई आदरणीया!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 30, 2014 at 10:05am

आ. लक्ष्मण जी, आपकी प्रतिक्रिया हमेशा की भाँती उत्साह वर्धन कर नव ऊर्जा भर रही है बहुत- बहुत आभार आपका. 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 30, 2014 at 9:53am

"जीवन में कितने चक्रव्यूह

पर घबराना कैसा" - सुन्दर रचना सार्थक सन्देश देती हुई | विशेषकर आज की युवा पीढ़ी को कठिन संघर्ष कर आगे बढ़ने की 

प्रेरणा की बहुत आवश्यकता है, ऐसे में इस तरह की रचना अहम हो जाती है | हार्दिक बधाई आदरणीया 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service