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ग़ज़ल- सारथी || हुआ है आज क्या घर में ||

हुआ है आज क्या घर में हर इक सामान बिखरा है

उधर खुश्बू पड़ी है और इधर गुलदान बिखरा है /१ 

मुहब्बत क्या है ये जाना मगर जाना ये मरकर ही

लिपटकर वो कफ़न से किस तरह बेजान बिखरा है /२ 

यहीं मैं दफ्न हूँ आ और उठाकर देख ले मिट्टी

मेरी पहचान बिखरी है मेरा अरमान बिखरा है /३ 

मुझे रुस्वाइयों का गम नहीं गम है तो ये गम है

लबों पर बेजुबानों के तेरा एहसान बिखरा है /४ 

ग़ज़ल के वास्ते मैं फिर नई पोशाक लाया हूँ

अलग ये बात पुर्जों में मेरा दीवान बिखरा है /५ 

.............................................................
अरकान : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ 

सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Saarthi Baidyanath on January 28, 2014 at 3:54pm

आदरणीय  MUKESH SRIVASTAVA जी , एक आध मिसरे लिखने की कोशिश में लगा रहता हूँ ..! अनेक धन्यवाद आपका ! स्नेह देते रहिएगा ! सादर  

Comment by Saarthi Baidyanath on January 28, 2014 at 3:51pm

जनाब  Neeraj Mishra "प्रेम" साहब, बहुत मेहरबानी ..जो खाकसार को इज्जत बख्शी आपने ! नजरे -इनायत है साहब आपकी !..कोटिशः अभिनन्दन ! :) 

Comment by Saarthi Baidyanath on January 28, 2014 at 3:50pm

आदरणीय Shyam Narain Verma जी ...ह्रदय तल से आभार व्यक्त कर रहा हूँ ! सादर नमन सहित :)

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on January 28, 2014 at 3:31pm

subhaaan allaah Baidhyanaath jee

Comment by Neeraj Nishchal on January 28, 2014 at 12:38pm

काश मैंने लिखी होती काश मैंने कही होती
ग़ज़ल ये आपकी पढ़के मेरे ईमान बिखरे हैं ।

बहुत बहुत और बहुत खूबसूरत लिखा है ।

Comment by Shyam Narain Verma on January 28, 2014 at 12:05pm
बहुत सुन्दर रचना , बधाई आप को | सादर
Comment by Saarthi Baidyanath on January 28, 2014 at 11:05am

चरण स्पर्श जनाब  वीनस केसरी  साहब ! आपका स्नेह ही नाचीज का सरमाया है ! बस शीश नवांकर ,आपके चरणों में बैठा हूँ! सिखलाते रहिएगा ...सादर !   

Comment by वीनस केसरी on January 28, 2014 at 1:17am

नई पोशाक लाया हूँ, ग़ज़ल के वास्ते देखो 
अगरचे जानता हूँ मैं, यहाँ ‘दीवान’ बिखरे हैं


और आख़िरी शेर तक आते-आते दिल लुट चुका है ....

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