For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- सारथी || जुल्फ़ के पेंचों में ||

जुल्फ़ के पेंचों में कमसिन शोख़ियों में

मुब्तला हूँ  हुस्न की रानाइयों  में/१ 

आसमां के चाँद की अब क्या जरूरत

चाँद रहता है नजर की खिड़कियों में/२ 

दिल पे भरी पड़ती है दोनों ही सूरत

हो कहीं वो दूर या नजदीकियों में/३ 

सोचता हूँ अब उसे माँ से मिला दूँ

छुप के बैठी है जो कब से चिठ्ठियों में/४ 

वो अदाएं दिलवराना क़ातिलाना

अब कहाँ वो रंग यारों तितलियों में/५ 

है सुकूं कितना,बताउं कैसे तुमको

यार इज्जत की, कमाई रोटियों में/६ 

चार मिसरों से कहो कांधे पे अपने

ले चलें हमको सुखन की वादियों में/७ 

..................................................

अरकान : २१२२ २१२२ २१२२ 

सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 863

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 11, 2014 at 6:09pm

तो फिर यारों शब्द का अनुस्वार हटा दें.

अब कहाँ वो रंग, यारो तितलियों में..  स काम हो गया.

Comment by Saarthi Baidyanath on January 11, 2014 at 3:03pm

जी महाशय,मुआफी चाहता हूँ  ...आप सही हैं , निम्नलिखित पंक्ति का आशय = 'ऐ यार, तितलियों में अब वो रंग नहीं' यही होना चाहिए, और व्यक्तिगत रूप से इसी भाव से उस शेर को कहा था ...परन्तु भाव-सम्प्रेषण में कमी रह गई है ! मार्गदर्शन जरुर करें ..सखेद  !  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 11, 2014 at 2:30pm

सब ठीक है, लेकिन आपने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया है, भाई... . :-(((

शुभेच्छाएँ

Comment by Saarthi Baidyanath on January 11, 2014 at 2:11pm

लिखना सफल हो गया आदरणीय ! बहुत स्नेह दिया आपने ! प्रत्युत्तर में शीश नवांकर विनीत प्रणाम कर रहा हूँ, और अकिंचन किसी योग्य नहीं है ! सादर नमन व्  कोटिशः आभार ..कोटिशः आभार !

आदरणीय  Saurabh Pandey जी, इस मंच का सेवक हूँ ..सिखलाते रहिएगा व् कृपा दृष्टि बनाये रखियेगा ! हार्दिक अभिनन्दन :)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 10, 2014 at 11:16pm

एक-एक शेर लाख-लाख का.. .

और ये तो कमाल-

इन उजालों की वजह कंदिल नहीं है 
चाँद रहता है, बगल की खिड़कियों में /२

सोचता हूँ आज, माँ से ही मिला दूँ 
कब से डरकर, वो छुपी हैं चिठ्ठियों में /५

नौजवानी से बुढ़ापे तक का रिश्ता 
क्या सलीका था, पुराने दर्जियों में/१०

बहुत-बहुत खूब..

अब कहाँ वो रंग यारो तितलियों में...   यानि अब वो रंग नहीं यारों और तितलियो में या ऐ यार, तितलियों में अब वो रंग नहीं ?

Comment by Saarthi Baidyanath on January 10, 2014 at 11:14am

आदरणीया  MAHIMA SHREE जी , तहे दिल से शुक्रिया आपका ! बहुत बहुत मेहरबानी आपकी ..जो ग़ज़ल के चंद अशआर आपको पसंद आये ! :)

Comment by Saarthi Baidyanath on January 7, 2014 at 8:42pm

मान्यवर  vijay nikore जी , आपके शुभागमन से मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत खुश व आह्लादित महसूस कर रहा हूँ ! आपका स्नेहाशीष मिला ...और क्या चाहिए अकिंचन को  ..! सादर चरण स्पर्श कर रहा हूँ और विनती कर रहा हूँ निरंतर अपना स्नेह बनाये रखें और साथ ही साथ अपना शिष्य समझ मार्गदर्शन करने की कृपा भी करें ..! प्रणाम आदरणीय ... सचमुच बहुत अच्छा लग रहा है ! बहुत बहुत धन्यवाद ...कोटिशः आभार सहित :)

Comment by Saarthi Baidyanath on January 7, 2014 at 8:37pm

महाशया  Priyanka singh जी ...आभार आपका जो ग़ज़ल अच्छी लगी ! बस, कोशिश तो यही रहती है कि किसी  ग़ज़ल में कुछ मिसरे  बढ़िया लिख सकूँ ... आप सबका स्नेह है जो और भी अच्छा लिखने को प्रेरित करता है ! साथ बने रहिएगा ...बहुत बहुत धन्यवाद प्रियंका मैडम :)

Comment by MAHIMA SHREE on January 7, 2014 at 8:36pm

सोचता हूँ आज, माँ से ही मिला दूँ 
कब से डरकर, वो छुपी हैं चिठ्ठियों में.... क्या बात है ... हार्दिक बधाई आपको सादर

Comment by Saarthi Baidyanath on January 7, 2014 at 8:34pm

माननीय  बृजेश नीरज जी ...आपकी स्नेहिल टिप्पणी हमेशा हौसला बढ़ाती है हमारी ...मार्गदर्शन करते रहिएगा ..! सादर प्रणाम व धन्यवाद ज्ञापित कर रहा हूँ ..! शुक्रिया बहुत बहुत  :)

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
33 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
12 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Jul 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service