जुल्फ़ के पेंचों में कमसिन शोख़ियों में
मुब्तला हूँ हुस्न की रानाइयों में/१
आसमां के चाँद की अब क्या जरूरत
चाँद रहता है नजर की खिड़कियों में/२
दिल पे भरी पड़ती है दोनों ही सूरत
हो कहीं वो दूर या नजदीकियों में/३
सोचता हूँ अब उसे माँ से मिला दूँ
छुप के बैठी है जो कब से चिठ्ठियों में/४
वो अदाएं दिलवराना क़ातिलाना
अब कहाँ वो रंग यारों तितलियों में/५
है सुकूं कितना,बताउं कैसे तुमको
यार इज्जत की, कमाई रोटियों में/६
चार मिसरों से कहो कांधे पे अपने
ले चलें हमको सुखन की वादियों में/७
..................................................
अरकान : २१२२ २१२२ २१२२
सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
Comment
तो फिर यारों शब्द का अनुस्वार हटा दें.
अब कहाँ वो रंग, यारो तितलियों में.. बस काम हो गया.
जी महाशय,मुआफी चाहता हूँ ...आप सही हैं , निम्नलिखित पंक्ति का आशय = 'ऐ यार, तितलियों में अब वो रंग नहीं' यही होना चाहिए, और व्यक्तिगत रूप से इसी भाव से उस शेर को कहा था ...परन्तु भाव-सम्प्रेषण में कमी रह गई है ! मार्गदर्शन जरुर करें ..सखेद !
सब ठीक है, लेकिन आपने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया है, भाई... . :-(((
शुभेच्छाएँ
लिखना सफल हो गया आदरणीय ! बहुत स्नेह दिया आपने ! प्रत्युत्तर में शीश नवांकर विनीत प्रणाम कर रहा हूँ, और अकिंचन किसी योग्य नहीं है ! सादर नमन व् कोटिशः आभार ..कोटिशः आभार !
आदरणीय Saurabh Pandey जी, इस मंच का सेवक हूँ ..सिखलाते रहिएगा व् कृपा दृष्टि बनाये रखियेगा ! हार्दिक अभिनन्दन :)
एक-एक शेर लाख-लाख का.. .
और ये तो कमाल-
इन उजालों की वजह कंदिल नहीं है
चाँद रहता है, बगल की खिड़कियों में /२
सोचता हूँ आज, माँ से ही मिला दूँ
कब से डरकर, वो छुपी हैं चिठ्ठियों में /५
नौजवानी से बुढ़ापे तक का रिश्ता
क्या सलीका था, पुराने दर्जियों में/१०
बहुत-बहुत खूब..
अब कहाँ वो रंग यारो तितलियों में... यानि अब वो रंग नहीं यारों और तितलियो में या ऐ यार, तितलियों में अब वो रंग नहीं ?
आदरणीया MAHIMA SHREE जी , तहे दिल से शुक्रिया आपका ! बहुत बहुत मेहरबानी आपकी ..जो ग़ज़ल के चंद अशआर आपको पसंद आये ! :)
मान्यवर vijay nikore जी , आपके शुभागमन से मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत खुश व आह्लादित महसूस कर रहा हूँ ! आपका स्नेहाशीष मिला ...और क्या चाहिए अकिंचन को ..! सादर चरण स्पर्श कर रहा हूँ और विनती कर रहा हूँ निरंतर अपना स्नेह बनाये रखें और साथ ही साथ अपना शिष्य समझ मार्गदर्शन करने की कृपा भी करें ..! प्रणाम आदरणीय ... सचमुच बहुत अच्छा लग रहा है ! बहुत बहुत धन्यवाद ...कोटिशः आभार सहित :)
महाशया Priyanka singh जी ...आभार आपका जो ग़ज़ल अच्छी लगी ! बस, कोशिश तो यही रहती है कि किसी ग़ज़ल में कुछ मिसरे बढ़िया लिख सकूँ ... आप सबका स्नेह है जो और भी अच्छा लिखने को प्रेरित करता है ! साथ बने रहिएगा ...बहुत बहुत धन्यवाद प्रियंका मैडम :)
सोचता हूँ आज, माँ से ही मिला दूँ
कब से डरकर, वो छुपी हैं चिठ्ठियों में.... क्या बात है ... हार्दिक बधाई आपको सादर
माननीय बृजेश नीरज जी ...आपकी स्नेहिल टिप्पणी हमेशा हौसला बढ़ाती है हमारी ...मार्गदर्शन करते रहिएगा ..! सादर प्रणाम व धन्यवाद ज्ञापित कर रहा हूँ ..! शुक्रिया बहुत बहुत :)
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