For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सहरा की गर्म रेत और पानी का ये भरम ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2212    1212    1212     22 

तारीक़ी फिर लगी मुझे बढ़ी चढ़ी क्यों है   

सूरत में सुब्ह की बसी ये बरहमी क्यों है

क्यूँ रात शर्मशार सी है चुप खड़ी दिखती  

ये सुब्ह बेज़ुबान सी , डरी हुई क्यों है

ख़ंज़र की दिल-ज़िगर से, दुश्मनी तो है जाइज़

अचरज में पड़ गया हूँ मैं, ये हमदमी क्यों है

जब तक वो पास थी मेरे मै खुश नहीं था, फिर

अब ग़ैर हो चुकी है तो लगी कमी क्यों है

मै दिल-जिगर हूँ, प्यार हूँ ,मै हमसफर हूँ , तो

मुझ पर पड़ी निगाह उनकी सरसरी क्यों है

सहरा की गर्म रेत और पानी का ये भरम

दिल पूछ्ता है ऐ ख़ुदा ये बेबसी क्यों है

 

***********************************

 

 मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

 

Views: 787

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 2, 2014 at 7:34pm

आदरणीय सौरभ भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ । गुनहगार को शर्मशार कर देता हूँ , गलती बताने के लिये आपका आभार ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 2, 2014 at 7:07pm

मै दिल-जिगर हूँ, प्यार हूँ ,मै हमसफर हूँ , तो

मुझ पर पड़ी निगाह उनकी सरसरी क्यों है

सहरा की गर्म रेत और पानी का ये भरम

दिल पूछ्ता है ऐ ख़ुदा ये बेबसी क्यों है

इन दो अश’आर पर विशेष बधाई..

गुनहगार को आपने जैसे बाँधा है, उससे मैं संयत नहीं हो पारहा हूँ.

शुभेच्छाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 30, 2014 at 3:43pm

आदरणीय अरुण अनंत भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ॥ गुनहगार के लिये गुननगार हूँ , उसकी जगह शर्मशार करके पढ्ने की कृपा करें  , संशोधन के लिये बाद में  डाल दूंगा ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 30, 2014 at 3:38pm

आदरणीया वन्दना जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 30, 2014 at 10:59am

वाह क्या कहने आदरणीय गिरिराज सर बेहतरीन अशआर हुए है शानदार ग़ज़ल कही है आपने ढेरों दाद कुबूल फरमाएं. मैं स्वयं भी आदरणीया राजेश माँ जी से पूर्णतया सहमत हूँ गुनहगार को २१२१ में नहीं बांधा जा सकता इसका वज्न १२२१ ही होना चाहिए.

Comment by vandana on January 30, 2014 at 7:25am

सहरा की गर्म रेत और पानी का ये भरम

दिल पूछ्ता है ऐ ख़ुदा ये बेबसी क्यों है

शानदार ग़ज़ल आदरणीय गिरिराज सर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 30, 2014 at 7:01am

आदरणीया राजेश जी , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

आदरणीया मुझे नही लग रहा है आप ग़लत है , गुनहगार को बांधने मै  ही गुनहगर लग रहा हूँ , फिर भी गुणीजनों की प्रतीक्षा कर लेता हूँ ॥  सराहना और सलाह के लिये आपका पुनः शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 30, 2014 at 6:53am

आदरणीया मीना जी , आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया ने हमेशा की तरह मेरी हिम्मत बढ़ाई है , आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 29, 2014 at 8:08pm

वाह वाह बहुत सुन्दर ग़ज़ल सभी अशआर प्रभावशील हैं बहुत सी  दाद कबूलिये आ० एक संशय --- 

क्यूँ रात गुनहगार सी है चुप खड़ी दिखती ----इस मिसरे में गुनहगार को आपने २१२१ में बांधा है जब की मेरे ख्याल से १२२१ में होना चाहिए ---हो सकता है मैं ग़लत हूँ ---पर यहाँ अटक रही हूँ  अंतिम शेर के लिए एक ही शब्द ---वल्लाह 

 

Comment by Meena Pathak on January 29, 2014 at 4:43pm

क्या बात है आ० गिरिराज जी .. गज़ब ... बहुत बहुत सुन्दर गज़ल .. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें | सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
15 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
17 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service