For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

है पानी का बुलबुला ....

जीवन दर्शन पर ३ मुक्तक :


1.है पानी का बुलबुला ....

है पानी का बुलबुला ....ये जीवन तेरा जीव
बड़े भाग से मानव का ...मिला तुझे शरीर
आती जाती साँसों का ...नहीं कोई विश्वास
आत्म सुख के वास्ते हर ले किसी की पीर

2.मूर्ख मानव काया पे …

मूर्ख मानव काया पे ....तू काहे करे गुमान
नश्वर इस संसार में .....व्यर्थ है अभिमान
जान के भी अंजाम को क्योँ बनता अंजान
तू माया की नगरी में पलभर का मेहमान


3.जन्म मरण तो चक्र है ....

जन्म मरण तो चक्र है और चक्र है बेअन्त
इस जीवन का दोस्तों कहीं आदि है न अंत
हाड मांस के पिंजर ने मिट जाना इक दिन
मोह माया में उलझ कर भूल न प्रभु का पंथ


सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 956

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 5, 2014 at 9:28pm

// क्षमा चाहता हूँ नेट ठीक न होने के कारण मैं आपका आभार समय पर व्यक्त नहीं कर पाया //

ये किस बात की क्षमा मांग रहे हैं भाई सुशील सरना जी...:)  आपने परस्पर हुई चर्चा और सीखने सिखाने के क्रम में हुए सुझावों की सार्थकता को मान दिया... यही क्या कम है.

हम सभी यूं ही परस्पर समवेत सीखते चलें..यही तो मंच के उपलब्ध होने की सार्थकता है..

सादर.

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2014 at 7:48pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी मुक्तकों पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। कृपया  अपना स्नेह बनाये रखें।  क्षमा चाहता हूँ नेट ठीक न होने के कारण मैं आपका आभार समय पर व्यक्त नहीं कर पाया। धन्यवाद 

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2014 at 7:47pm

आदरणीया प्राची सिंह जी आपके द्वारा मुक्तक में किया गया संशोधन वास्तव में सराहनीय है  … आपके द्वारा किया गये श्रम हेतु मैं आपका आभारी हूँ।  कृपया अपना स्नेह बनाये रखें।  क्षमा चाहता हूँ नेट ठीक न होने के कारण मैं आपका आभार समय पर व्यक्त नहीं कर पाया। धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 1, 2014 at 2:04am

प्रस्तुत मुक्तकों पर सार्थक और निरर्थक दोनों तरह की बातें हुई हैं.

सार्थक बातों के क्रम में आदरणीया प्राचीजी द्वारा प्रस्तुत मुक्तकों में से एक को दोहा मुक्तक का रूप दिया जाना अत्यंत भला लगा. उनके प्रति आभार.

आदरणीय सुशील जी, इस प्रस्तुति के लिए सादर आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 28, 2014 at 5:38pm

आदरणीय सुशील सरना जी 

मेरे कुछ कहे को मान देने के लिए धन्यवाद..

आपके लिखे एक मुक्तक में कुछ बदलाव किये हैं ज़रा देखिये...

है पानी का बुलबुला ....ये जीवन तेरा जीव  ............                 है पानी का बुलबुला ,   भंगुर क्षणिक शरीर 
बड़े भाग से मानव का ...मिला तुझे शरीर   ............                 बड़भागी यह जन्म है , कहते संत फ़कीर 

आती जाती साँसों का ...नहीं कोई विश्वास   ............                आती जाती श्वास का , नहीं तनिक विश्वास
आत्म सुख के वास्ते हर ले किसी की पीर    ............                आत्मोन्नति की राह पर, हर ले सब की पीर

Comment by Sushil Sarna on January 28, 2014 at 4:25pm

आदरणीय नीरज मिश्रा ''प्रेम'' जी मुक्तकों पर आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार  कथन आपका भी  सत्य है कथन हमारा भी सत्य है अब इसको अमल में लेना न लेना स्वयं पर निर्भर करता है  .... आपके स्नेह का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on January 28, 2014 at 4:21pm

आदरणीय डॉ.प्राची सिंह जी  मुक्तकों पर आपकी समीक्षात्मक  प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। आपका आभारी होऊँगा यदि आप मुक्तकों में सुधार कर मार्गदर्शन करेंगी ताकि भविष्य में पुनः इस त्रुटि से बचा जा सके। … हार्दिक आभार 

Comment by Neeraj Nishchal on January 27, 2014 at 5:56pm

सोचता हूँ कविता पर बोलूं कि भाव पर ही बोलता हूँ क्यों कि मै शरीर वादी नही
आत्मा वादी होना ज्यादा पसंद करता हूँ कविता का शिल्प कविता का शरीर
और कविता का भाव कविता कि आत्मा होती है इसलिए ये ध्यान में रखें शरीर
बिना आत्मा का अस्तित्व है पर आत्मा बिना शारीर का कोई अस्तित्व नही

आते हैं आपकी कविता पर बेशक बहुत सुन्दर लिखी है जो कुछ लिखा है सत्य लिखा है
पर ये सिर्फ बातें होकर रह गयी हैं सोचने वाली बात ये है हम इन्हे अपने जीवन में कितना मूल्य देते हैं
कबिरा खड़ा बज़ार में लिए लुकाठी हाथ ।
जो घर बारे आपना चले हमारे साथ ।

सब कबीर के इस दोहे से सहमत हैं पर ऐसा कर कौन पाता है ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 27, 2014 at 4:18pm

क्षणभंगुर जीवन और जनम मरण के चक्र पर सुन्दर मुक्तक प्रयास हुआ है आ० सुशील सरना जी 

गेयता/प्रवाह के लिए शब्द समुच्चयों में कलों के निर्वहन व तुकांतता के लिए थोडा सा और शिल्पगत प्रयास अवश्य ही प्रस्तुति को और निखारेगा.

शुभकामनाएं 

Comment by Sushil Sarna on January 25, 2014 at 4:46pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी  जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक बात…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"वाह वाह वाह !  आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व को…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"जय हो..  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी left a comment for Shabla Arora
"आपका स्वागत है , आदरणीया Shabla jee"
yesterday
Shabla Arora updated their profile
yesterday
Shabla Arora is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शुभातिशुभ..  अगले आयोजन की प्रतीक्षा में.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"वाह, साधु-साधु ऐसी मुखर परिचर्चा वर्षों बाद किसी आयोजन में संभव हो पायी है, आदरणीय. ऐसी परिचर्चाएँ…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रदत्त विषयानुसार मैंने युद्ध की अपेक्षा शान्ति को वरीयता दी है. युद्ध…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service