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साथी! तोड़ न निर्दयता से चुन चुन मेरे पात...

नन्हीं एक लता मैं  निर्बल,
मेरे पास न पुष्प न परिमल,
मेरा सञ्चित कोष यही बस,
कुछ पत्ते कुम्हलाये कोमल,
तोड़ न दे यह शाख अकिञ्चन, निर्मम तीव्र प्रवात...

मैं हर भोर खिलूँ मुस्काती,
पर सन्ध्या आकुलता लाती,
साँस साँस भारी गिन गिन मैं,
रजनी का हर पहर बिताती,
एक नये उज्ज्वल दिन की आशा, मेरी हर रात...

पड़ती तेरी ज्वलित दृष्टि जब,
भीत प्राण भी हो जाते तब,
सहमी सकुचायी मैं कहती-
यह दुर्लभ सौभाग्य मिले कब,
मेरी भी काया हो जिस दिन मलय-सुवासित-स्नात...

-मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Comment by अजय कुमार सिंह on February 6, 2014 at 12:36pm
आदरणीया कल्पना रामानी जी, आदरणीय नीरज (Neeraj Kumar 'Neer) जी  और अनिल कुमार 'अलीन' जी,
मेरा प्रयास आपकी दृष्टि  आया और आपने  इतना मान दिया, आभारी हूँ।
सादर। 
Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 5, 2014 at 11:52pm

नन्हीं एक लता मैं  निर्बल,
मेरे पास न पुष्प न परिमल,
मेरा सञ्चित कोष यही बस,
कुछ पत्ते कुम्हलाये कोमल,
तोड़ न दे यह शाख अकिञ्चन, निर्मम तीव्र प्रवात............बहुत खूब.............
 

Comment by Neeraj Neer on February 1, 2014 at 2:08pm

बहुत सुन्दर गीत ..

Comment by कल्पना रामानी on January 31, 2014 at 11:04pm

बहुत बहुत सुंदर, सुकोमल मन को छूता हुआ  गीत ...हार्दिक बधाई आपको आदरणीय अजय जी 

Comment by अजय कुमार सिंह on January 31, 2014 at 8:58pm

आदरणीय सौरभ  (Saurabh Pandey) जी,
गीत की विधा में मेरे प्रयास किसी बालक द्वारा कागज़ पर खींची गयी आड़ी-तिरछी रेखाओं से अधिक कुछ भी नहीं। उस बालक के लिये आप जैसे विदुर और प्रवीण अग्रज का स्नेहिल आशीष उल्लास का अतिरेक भी है और प्रेरणा का स्रोत भी।

स्नेहाशीषाकांक्षी- अजय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 31, 2014 at 3:08pm

भाई अजयजी, आपकी भावनाओं को लयबद्ध होते देखना सदा से मनस-तोष का कारण रहा है. गीतों के माध्यम से जिस तरह से संवेदनापूरित भावनाओं को अभिव्यक्ति मिलती है वह संतुष्ट करता है.
लतिका को बिम्ब बना कर गृहिणी की दशा को जिस तरह से आपने अभिव्यक्त किया है वह आपके हृदय की कोमलता का परिचायक है.
हार्दिक शुभेच्छाएँ
 

Comment by अजय कुमार सिंह on January 28, 2014 at 11:38pm

mohinichordia जी, Dr.Prachi Singh जी, Meena Pathak जी एवं rajesh kumari जी - आप सभी की सकारात्मक टिप्पणियाँ मुझ जैसे नव-हस्ताक्षर के लिये प्रेरणास्रोत हैं. स्नेह बनाये रखें. हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 28, 2014 at 8:25pm

नन्हीं एक लता मैं दुर्बल,
मेरे पास न पुष्प न परिमल,
मेरा सञ्चित कोष यही बस,
कुछ पत्ते कुम्हलाये कोमल,
तोड़ न दे यह शाख अकिञ्चन, निर्मम तीव्र प्रवात...वाह वाह बहुत ही सुन्दर अनुपम गीत दिल को छू गया .बहुत बहुत बधाई अजय जी 

Comment by Meena Pathak on January 28, 2014 at 12:49pm

बहुत सुन्दर, सुकोमल रचना ... बधाई आप को 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 27, 2014 at 3:24pm

बहुत सुन्दर सुकोमल भाव प्रवण गीत... लता की निर्बलता के बिम्ब को बहुत ख़ूबसूरती से निभाया है

शुभकामनाएं 

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