For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

किनारा इस सरिता का

तू बहादुर बेटी है पंजाब की
तू शान आन और बान है हमारे घर की
तू झाँसी की रानी है
तुझे क्या डर अकेले
दुनिया के किसी भी कोने में जा सकती हो
हाँ
ऐसे ही तो कहते थे ना हमेशा
जब कहती थी
मेरे साथ कहीं चलने को
आज समझा रहे थे मुझे
पगली क्यों रोती है ?
तेरे अंग संग हूँ हमेशा
तेरे साथ अपनी दोनों भुजाएं
अपने दो बेटे छोड़ आया हूँ
तुम्हे जरुरत नहीं
किसी का मुँह ताकने की
दोस्त जो नहीं पूछते मत कर चिंता
जो साथ हैं उनका कर शुक्रिया
और बढती चल निरंतर
हमारे सपने पूरे करने
जो छोड़ आया हूँ अधूरे तेरे सहारे
मुझे विश्वास है तू पूरा करेगी उनको
अब किसको कहूँगी संग चलने को ???
''मैं हूँ ना''
आपको चिंता करने की जरुरत नहीं
तो शायद कहा होगा बहुतों ने
दोस्तों ने रिश्तेदारों ने
कौन खड़ा हुआ हमारे साथ उस घडी में ?
उनका अहसान वाकई नहीं उतार पाएंगे कभी
मेरे लिए तो आप हो ना
हमेशा मेरा संभल बन, मार्गदर्शक बन
मुझे प्रेरणा देते हो
सुन रहे हो ना आप
ऐसा कहते कहते आँख जो खुली
तो तलाश थी उस अक्स की
जो मुझे चुप करा रहा था
पर कहीं नहीं था
नहीं नहीं यहीं कहीं था
या है
किनारा इस सरिता का
सरिता जिसका काम ही है
मुश्किलों को लांघना निरंतर बढ़ना

..........................................

........मौलिक व् अप्रकाशित.........

Views: 511

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 21, 2014 at 10:47am

मुश्किल वक्त में जब कोइ साथ न दे... तो किसी अपने के अदृश्य आवरण का संबल ही सबसे बड़ी शक्ति होता है... सदेह स्वरुप नहीं नहीं, वरन भाव रूप ही सर्वशक्तिमान है... फिर कोइ अकेली नारी भला निर्बला कैसे? 

आत्मविश्वास को अपने ही भीतर टटोलती इस अभिव्यक्ति के लिए सादर बधाई , हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by vijay nikore on January 18, 2014 at 12:45pm

भावपूर्ण रचना के लिए बधाई, आदरणीया सरिता जी।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 18, 2014 at 9:13am

बहुत सुंदर रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया सरिता जी

Comment by रमेश कुमार चौहान on January 17, 2014 at 8:49pm

सुंदर रचना  के लिये बधाई  आदरणीया

Comment by Sarita Bhatia on January 17, 2014 at 10:08am

सभी दोस्तों का हार्दिक आभार ,मार्गदर्शन करते रहें |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 16, 2014 at 11:59pm

चरैवेति का आह्वान करती इस रचना के लिए हार्दिक बधाई. ईश्वर सबल रखे, रचनाकर्म सार्थक होता चले..

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 16, 2014 at 10:53pm

आदरणीय सरिता जी , अपने साथ बहा ले जने वाली बहुत भाव पूर्ण रचाना के लिये आपको बधाई ॥

Comment by coontee mukerji on January 16, 2014 at 9:17pm

अच्छी रचना के लिये हार्दिक बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 16, 2014 at 8:18pm

आदरणीया सरिता जी बेहतरीन रचना है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by annapurna bajpai on January 16, 2014 at 6:32pm

अच्छी रचना है , अंत बहुत अच्छा लगा । आ0 सरिता जी बधाई आपको । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
23 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service