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वंदना

हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
विद्द्या का मुझको भी वरदान दे माँ

करूँ मै भी सेवा तेरी उम्र भर
मुझमे भी ऐसा कोई ‘भाव’ दे माँ
हे शारदे माँ , .......

चलूँ मै भी हरदम सत्यपथ पर
कभी भी न मुझसे कोई चूक हो माँ
हे शारदे माँ ,...........

दिखें जो दुखी-दीन आगे मेरे
कुछ सेवा उनकी भी मै कर सकूं माँ
हे शारदे माँ ,...............

जिह्वा जो खोलूँ तू वाँणी मे हो
चले जो कलम तो तू शब्द दे माँ
हे शारदे माँ, .............

सुख,स्वास्थ,शान्ति सभी को मिले
हर इक को ऐसा ही वरदान दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
विद्द्या का मुझको भी वरदान दे माँ ||

मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on January 16, 2014 at 6:49pm

माँ शारदे के चरणों मे समर्पित रचना के भाव अच्छे है आ0 मीना दी , आ0 प्राची जी के शब्दों को भी मान दें । सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 16, 2014 at 1:33pm

आदरणीया मीना जी माँ सरस्वती की बेहद सुन्दर वंदना की है आपने आदरणीया प्राची दी के कहे का सज्ञान करें. माँ शारदे के श्री चरणों में समर्पित इस सुन्दर वंदना हेतु हार्दिक बधाई. जय माँ शारदे .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 16, 2014 at 12:22am

आदरणीया मीना पाठक जी 

एक अरसे से आपकी रचनाओं को पढ़ा है.. बहुत सुन्दर भावों को सुन्दर शब्दों में पूरे दिल से ई हैं आप इसलिए आपकी रचनाएं हमेशा ही दिल को स्पर्श करती हैं, 

लेकिन मुझे लगता है अब तो समय हो ही गया है कि, इतने सुन्दर भाव सुगढ़ शिल्प में ढल अद्वितीय हो जाएं.. आपको तुकांतता के साथ ही, मात्रिकता और कुछ सरल छंदों , दोहा रोला कुण्डलिया चौपाई या फिर गीत नवगीत विधा आदि को सीखना चाहिए.

अब ये नहीं मालूम की आप ये प्रयास करने के लिए क्या सोचती हैं..

फिलहाल माँ शारदे के चरणों में अर्पित इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.

सस्नेह 

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