"स्वार्थ और प्यार "
मानव बिकाऊ है जमी पर , मानवता की आड़ में।
ईमान बिकता है यहाँ पर , धर्म जाए भाड़ में ।।
भ्रष्टाचार का खू लगा है ,हर मानव की दाड़ में।
ऐसा बिगाड़ा इंसा जैसे ,बच्चा बिगड़ता लाड़ में।।
स्वार्थ की खातिर बेचा देश , दुनियाँ के बाजार में।
वतन किया नीलाम देखो ,मानव के सरदार ने।।
प्यार कभी न बजता यारों ,खुदगर्जी के साज में।
और कभी न स्वार्थ टिकता ,दिलबर के दरबार में।।
इन दोनों का साथ तो जैसे ,जल पावक के साथ में।
या निकला हो सूरज कोई , अमावस की रात में।।
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मौलिक व अप्रकाशित
चौथमल जैन
Comment
बहुत अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक आभार!
टाइपिंग की समस्या धीरे-धीरे अभ्यास के साथ दूर हो जाएगी!
आदरणीय, हिंदी रचना लिखते समय 'खून', 'इंसान' ही लिखना उचित होता है.
माननीय श्यामनारायण जी वर्मा , बहिन मीना पाठक , माननीय गणेश जी बेगी , माननीय अखिलेश कृष्ण जी श्रीवास्तव , बहिन कुन्ती मुकर्जी , माननीय राम शिरोमणि पाठक जी , माननीय गिरिराज जी भंडारी ,बहिन अनुपमा वाजपेई ,माननीय नीरज कुमार जी नीर ,माननीय सौरभ जी पाण्डे ,माननीय रमेश कुमार जी चौहान , माननीय जितन्द्र जी गीत आप सभी को बहुत -बहुत धन्यवाद | मैं आपका आभारी हूँ | साथ ही क्षमा चाहता हूँ , टाइपिंग का ज्ञान कम होने के कारण लिखने में मुझे बहुत समय लगता है ,और तत्काल प्रतिक्रिया नहीं दे पाता हूँ |
भ्रष्टाचार का खू लगा है ,हर मानव की दाड़ में।
ऐसा बिगाड़ा इंसा जैसे ,बच्चा बिगड़ता लाड़ में।।
बहुत बढ़िया रचना, आदरणीय बधाई स्वीकारें
मानव बिकाऊ है मानवता की आड़ में।
बिकता ईमान है धर्म जाए भाड़ में ।।
बहुत बहुत बधाई आदरणीय चौथमल जैन जी |
आपकी कोशिशों के लिए बधाई. प्रयासरत रहें.
शुभेच्छाएँ
बहुत खूब भाव..
sundarसुंदर भाव , अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें ।
मानव बिकाऊ है जमी पर , मानवता की आड़ में।
ईमान बिकता है यहाँ पर , धर्म जाए भाड़ में ।। -------- बहुत बढ़िया भाई चौथ मल जी , बधाई ॥
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय …… हार्दिक बधाई आपको
सुंदर रचना के लिये हार्दिक बधाई
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