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था मेरा, जितना भी था, जैसा भी था, मेरा तो था

बस न पाया , क्या हुआ , कुछ वक़्त वो , ठहरा तो था
वो था मेरा , जितना भी था , जैसा भी था , मेरा तो था

साथ उसके हाथ का , मुझको न मिल पाया कभी
मेरे दिल में उम्र भर , उसका मगर , चेहरा तो था

आँसुओं की , आँख में मेरे , खड़ी इक भीड़ थी
बंद पलकों का लगा , लेकिन कड़ा , पहरा तो था

हाँ ! सियासत में , वो बन्दा , था बहुत कमतर "अजय"
ख़ासियत थी इस मगर , कैसा भी था , बहरा तो था

उम्र भर , इस फ़िक्र में , डूबा रहा मैं , मुंतज़िर
दरिया मेरे एहसास का , उसके लिए गहरा तो था ?

अजय कुमार शर्मा
प्रथम , मौलिक व अप्रकाशित

Views: 560

Comment

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Comment by ajay sharma on January 20, 2014 at 11:11pm

veenus ji apka gazal par aana hua ,,mai danya hi ho gaya ............sudhar ki aage koshish karta rahoonga .........shukriya   

Comment by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 3:29am

भाई ये ग़ज़ल एक शानदार ग़ज़ल का बेहतर कच्चा माल साबित हो सकती है मगर इसे शानदार ग़ज़ल होने के लिए अभी बहुत समय और मेहनत की ज़रुरत है ...
मश्क करें तो कई गिरहें खुलेंगी ... एक नमूना देखें >>>>

साथ उसके हाथ का , मुझको न मिल पाया कभी
मेरे दिल में उम्र भर , उसका मगर , चेहरा तो था

साथ उनका आखिरश मुझको न मिल पाया मगर 
कुछ मलाल उनको भी है, ये आसरा रहता तो था

Comment by MAHIMA SHREE on January 14, 2014 at 10:16pm

उम्र भर , इस फ़िक्र में , डूबा रहा मैं , मुंतज़िर
दरिया मेरे एहसास का , उसके लिए गहरा तो था ?.....वाह वाह बेहतरीन  गज़ल ... हार्दिक बधाई सादर

Comment by ram shiromani pathak on January 14, 2014 at 10:07pm

बहुत सुंदर रचना भाई जी   // हार्दिक बधाई आपको   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2014 at 8:48am

आदरणीय अजय भाई , बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल हुई है , आपको बहुत बधाइयाँ ॥

उम्र भर , इस फ़िक्र में , डूबा रहा मैं , मुंतज़िर
दरिया मेरे एहसास का , उसके लिए गहरा तो था ? ------ लाजवाब !! ढेरों बधाइयाँ ॥

Comment by coontee mukerji on January 11, 2014 at 4:30pm

एक सुंदर रचना केलिये आपको बधाई

Comment by ajay sharma on January 11, 2014 at 3:33pm

thanks akhilesh sir 

Comment by ajay sharma on January 11, 2014 at 3:32pm

हाँ ! सियासत में , वो बन्दा , था बहुत कमतर "अजय" 
ख़ासियत थी इस मगर , कैसा भी था , बहरा तो था

 

के स्थान पर कृपया पढ़ें

हाँ ! सियासत में , वो बन्दा , था बहुत कमतर "अजय" 

ख़ासियत थी , इक मगर , कैसा भी था , बहरा तो था

Comment by Abhinav Arun on January 11, 2014 at 2:50pm

साथ उसके हाथ का , मुझको न मिल पाया कभी
मेरे दिल में उम्र भर , उसका मगर , चेहरा तो था

आँसुओं की , आँख में मेरे , खड़ी इक भीड़ थी
बंद पलकों का लगा , लेकिन कड़ा , पहरा तो था

                   …  क्या कहने श्री अजय जी दिलकश कलाम वाह दिली मुबारकबाद कबूलें !!

Comment by Shyam Narain Verma on January 11, 2014 at 1:25pm
बहुत खूब , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

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