For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोस्ती .... (विजय निकोर)

दोस्ती

 

देखता हूँ सहचर मीत मेरे

सहसा, दोस्ती की निगाहें हैं झुकी हुई

पलकें भीगी

घिरते आए संत्रस्त ख़यालों पर

खरोंचते-उतरते संतप्त ख़याल ...

फिसलते भीगे गालों पर

दोस्ती के वह सुनहले रंग

बिखरते गीले काजल-से

 

कहाँ हैं दोस्ती की रोश्नी की

वह अपरिमय चिनगियाँ

बनावटी थीं क्या ? नहीं, नहीं,

चमकती थीं वह अपेक्षित आँखों में ...

रुको, माप लूँ मैं बची हुई थोड़ी-सी

उस चमक की थाहें

शायद उसी को सोचते, शा-य-द

नींद आ जाए,

कि खुरदुरी दूरियों को पार कर

भीतर के उन आवेगों में

गिरफ़तार

अँधियारे वीराने में भी

बहला लूँ

अब हुए लावारिस बेकाबू सपनो कों

आँख के खुलने तक, या क्षण-पल

साँस के रुकने तक ...

 

--------

- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 757

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 20, 2014 at 1:32pm

 

आदरणीय वैद्य नाथ जी, रचना की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on January 20, 2014 at 1:28pm

//कितनी सुंदरता से भावों को अपनी रचना मे ढाला है//

सराहना के लिए आपका धन्यवाद, आदरणीया अन्नपूर्णा जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on January 20, 2014 at 1:26pm

// जवाब नहीं आपका क्या भाव है आपके……बहुत गहरी बात ....सच दिल को छू गयी ....//

 

इतनी सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रियंका जी।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 10, 2014 at 11:44pm

होता है .. होता है ! नम आखों में अनकहे शब्द झिलमिलाते हैं और कहते न कहते चू पड़ते हैं !!

इस नरम प्रस्तुति के लिए बधाई, आदरणीय

Comment by AVINASH S BAGDE on January 7, 2014 at 11:03pm

.भावों को बेहद सुन्दरता से पिरोया आपने 

गहन अनुभूतियों का सफल प्रक्षेपण 

भाई विजय जी , बहुत सुन्दर !! 

खूब लाजवाब

Comment by MAHIMA SHREE on January 7, 2014 at 8:27pm

वाह .. बेहद गहन अनुभूतियों का सफल प्रक्षेपण ..हार्दिक बधाईयाँ... सादर

Comment by बृजेश नीरज on January 7, 2014 at 1:21pm

वाह! बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 6, 2014 at 10:50pm

कहाँ हैं दोस्ती की रोश्नी की

वह अपरिमय चिनगियाँ

बनावटी थीं क्या ? नहीं, नहीं,

चमकती थीं वह अपेक्षित आँखों में ...

रुको, माप लूँ मैं बची हुई थोड़ी-सी

उस चमक की थाहें..........................भावों को बेहद सुन्दरता से पिरोया आपने बधाई स्वीकारें आदरणीय विजय जी

Comment by विजय मिश्र on January 6, 2014 at 6:25pm
अतीव सुंदर ,भावों में प्रोढ़ता ओढ़े पुनः एक हृदयस्पर्शी रचना के लिए अंतस से साधुवाद और नववर्ष की शुभकामनाएँ भी विजयजी |
"पलकें भीगी
घिरते आए संत्रस्त ख़यालों पर
खरोंचते-उतरते संतप्त ख़याल ...
फिसलते भीगे गालों पर
दोस्ती के वह सुनहले रंग
बिखरते गीले काजल-से | " - आपके शब्द हिरनी सी कोमल भावों में कुलाँचे लगाने में बेहद माहिर हैं और पाठक इन्हें समेटते-समेटते खुद में ही बिखरने लगता है|नए साल के इस प्रसाद से अनुगृहित हुआ ,धन्यवाद |
Comment by coontee mukerji on January 6, 2014 at 5:55pm

आपकी रचनाएँ अक्सर एक कहानी कहती हुई चलती है और पाठक  अनायास ही उस कहानी से जुड़ता चला जाता है.अतीत के कुएँ से  गूँजती कुछ आवाज़ें इंसान कहाँ तक बच सकता है.......

कि खुरदुरी दूरियों को पार कर

भीतर के उन आवेगों में

गिरफ़तार

अँधियारे वीराने में भी

बहला लूँ

अब हुए लावारिस बेकाबू सपनो कों

आँख के खुलने तक, या क्षण-पल

साँस के रुकने तक .......हार्दिक बधाई आपको  आदरणीय. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
21 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Jul 29
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service