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चौपई छन्द = प्रसंग,,श्री रामचरित मानस ( पुष्प-वाटिका )

चौपई छन्द = प्रसंग,,श्री रामचरित मानस ( पुष्प-वाटिका )
शिल्प = प्रत्यॆक चरण मॆं १५ मात्रायॆं तुकान्त गुरु+लघु कॆ साथ,
=========================================

भॊर भयॆ प्रभु लक्ष्मण संग !! उड़त गगन महुँ विविध विहंग !!
कहुँ कहुँ भ्रमर करहिँ गुँन्जार !! नाचहिँ कहुँ कहुँ झूमि पुछार !!

मन्द पवन सुचि शीत बयार !! मानहुँ गावत मंगलचार !!
लॆन प्रसून गयॆ फ़ुलवारि !! बंधु लखन सँग राम खरारि !!

पहुँचॆ पुष्प-वाटिका जाइ !! स्वागत करत सुमन मुस्काइ !!
भाँति भाँति रँग खिलॆ कनॆर !! दॆखहिँ कृपा सिंधु दृग फॆर !!

बॆला चटक चमॆली रंग !! निरखति रूप भयउ सबु दंग !!
गॆंदा गुड़हल अरु कचनार !! महकति चम्पा सदा बहार !!

ताहि घरी सखियन कॆ संग !! जनक नंदिनी पुलकित अंग !!
गिरिजहिं पूजइ ध्यान लगाय !! माँग रही वर हिय हरषाय !!

पुलकित गौरि  दीन्ह  वरदान !! एवमस्तु कहि  भव कल्यान !!
सखिन्ह पहिं पुनि गई बहॊरि !! अति हर्षित हिय उठी हिलॊरि !!

निरखॆ राम लखन दुहुँ भ्रात !! सुफल नैन भॆ आजु प्रभात !!
दॆखत रामहिँ गई लजाय !! पुनि पुनि दॆखइ पलक उठाय !!

चितवत चकित बहॊरि बहॊरि !! मुख मयंक जस चितव चकॊरि !!
नयन मिलत सिय जाइ लजाय !! लखहिँ सखी सबु हिय हर्षाय !!

कहॆ बचन तब सखी सयानि !! भयउ विलंब सुनहुँ गुण खानि !!
सब आउब पुनि हॊत बिहान !! निरखबु सत छवि रूप निधान !!

मुख तॆ नहिँ निकसॆ कछु बैन !! बरबस निरखि रहॆ छवि नैन !!
भयॆ शकुन कछु रामहिँ सॊइ !! कहा अनुज मन विस्मय हॊइ !!

जदपि नहीं कछु संशय मॊहि !! तबहूँ  कहउँ अनुज सुनु  तॊहि !!
सियहिँ निहारत प्रथमहिँ बार !! नख सिख मानहुँ बजॆ सितार !!

सपनँहु पर-तिय सकै न आय !! रघु-वंशहिँ कर इहइ सुभाय !!
कारण कवन रहा मनु डॊल !! जानइ विधि कस रचा खगॊल !!

फरकहिं  सुभग  अंग सबु आज !! मानहुँ  युद्ध  करइ  रति-राज !!
गुरु पितु मातु दॆवि कुल स्वामि !! दासु शरण तव शम्भु नमामि !!

कवि-"राज बुन्दॆली"
०३/०१/२०१४
पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 2337

Comment

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Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 5, 2014 at 4:59pm
Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 5, 2014 at 4:57pm

भाई,,बृजेश नीरज,,,ये शब्द मात्रा गणना की सुविधा हेतु नही किये गये हैं,,,,बल्कि पहले से अपने मूल अर्थ के साथ प्रयुक्त होते आ रहे है और मानस में तमाम जगह प्रयोग हुये हैं,,,,,और यदि गोस्वामी जी ने मात्रा निर्वाहन हेतु प्रयोग किया है,,,,तो मैं क्यूं नहीं कर सकता, एक दोहा देखिये,,,,

बालकाण्ड का ,,,,एक दोहा देखिये,,,,,अति अपार जे सरितवर,जौ नृप सेतु (कराहिं) ॥चढ़ि पिपीलिका परम लघु,बिनु श्रम (पारहिं) (जाहिं) ॥ कोष्टक में दिये शब्दों पर विचार करिये,,शायद आपकी शंका का समाधान हो सके,,,,और भी मानस में तमाम जगह देखने को मिल जायेगा,,,,बन्धुवर,,,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 5, 2014 at 4:51pm

आदरणीय राज साहब हार्दिक आभार आपने शंका का निवारण किया इस लिहाज से आपने बेहतरीन रचना की है बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on January 5, 2014 at 4:11pm

आदरणीय राज भाई जी आपने शिल्प के सम्बन्ध में जो शंका समाधान किया है उसके लिए आपका हार्दिक आभार. 

भाई जी अवधी भाषा की हल्की सी जानकारी है. रामचरितमानस को पढ़ने का सौभाग्य मुझे मिला है. पढंत के शिल्प पर मैंने कोई आपत्ति नहीं की है. अपनी दूसरी टिप्पणी में आपसे जिस बिंदु पर मार्गदर्शन का निवेदन किया था, वह है- //चकॊरि, हर्षाय, सयानि, खानि, स्वामि// जैसे शब्दों मके प्रयोग पर. क्या पदांत की सहूलियत के आधार पर शब्दों का रूप/मात्राओं को दीर्घ=लघु रूप में परवर्तित किया जा सकता है?

आपसे इस बिंदु पर मार्गदर्शन की अपेक्षा है.

आशा है आप मेरी जिज्ञासा को अन्यथा नहीं लेंगे.

सादर! 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 5, 2014 at 3:55pm

भाई,,बृजेश नीरज,,,जैसा कि मैने कहा है कि,,,,इस छन्द का शिल्प यही है कि प्रत्येक चरण में १५ मात्राओं के साथ,,,,पदान्त गुरु+लघु अर्थात जगण,या तगण,,,आदि,,,से होता है तो फ़िर पदान्त इस प्रकार के शब्दो का आना स्वाभाविक है,,,,साथ ही यह पद अवधी में लिखे गये इसलिये उसके लालित्य के अनुरूप हैं,,,,,इन शब्दो का रामचरित मानस में भी प्रयोग मिलता है,,,,,,फ़िर मैं इस संदर्भ मॆं वरिष्ट विद्वज-जनों के विचार भी जानना चाहता हूं,,,हो सकता मेरा सीमित ज्ञान अधूरा हो,,,,,इसलिये यथार्थ व पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने की अभिलाषा है,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by बृजेश नीरज on January 5, 2014 at 1:05pm

आदरणीय भाई राज जी, शंका समाधान के लिए आपका हार्दिक आभार!

मैं इसे जयकारी के नाम से जानता था, आपकी इस पोस्ट के बहाने जानकारी बढ़ी, आपका आभार!

अब पदांत की सुविधा के लिए जिस तरह के शब्दों का प्रयोग किया गया है, उस पर भी आपके विचार जानने की उत्सुकता है!

सादर!

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 5, 2014 at 12:42pm

आदरणीय,,,,,,,भाई,, अरुन शर्मा 'अनन्त' ,,,जी आपका बहुत बहुत आभार आपने रचना को अपना बहु-मूल्य समय एवं स्नेह दिया,,,,मैने आपकी शंका का समाधान करने की नीचे ,,,,,भाई,, बृजेश नीरज,,,जी को दी गई प्रतिक्रिया में करने की कोशिश की है कितना सफ़ल हुआ हूं,,,,यह तो आप बतायेंगे,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,आभार आपका,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 5, 2014 at 12:39pm

आदरणीय,,,,,,,भाई,, बृजेश नीरज,,,जी आपका बहुत बहुत आभार आपने रचना को अपना बहु-मूल्य समय दिया,,,,अब रही बात आपके भ्रम की तो दर-असल बात यह है,,,, चौपाई,,,और ,,चौपई,,,,दोनॊं अलग अलग मात्रिक छन्द हैं,,,,,आपने जो अपनी प्रतिक्रिया में उल्लेख किया है,,,, (चौपाई मात्रिक सम छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा चरणान्त में जगण और तगण नहीं होता) उदाहरण -

बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥

अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥

चली बरात निसान बजाई। मुदित छोट बड़ सब समुदाई॥
रामहि निरखि ग्राम नर नारी। पाइ नयन फलु होहिं सुखारी॥ बेशक यह चौपाई छन्द है,,,,,, लेकिन मेरी यह रचना चौपई छन्द मॆं है,,, जिसका शिल्प मैने दर्शाया है ,,,,इस छन्द मॆं चौपाई की अपेक्षा १ मात्रा भार कम होता है अत: प्रत्येक चरण मॆं १५ मात्रायें होती है साथ ही तुका्न्त,,, गुरु+लघु के साथ होता है,,,,,,,उदाहरण : रघुपति राघव राजाराम ॥ पतित पावन सीताराम ॥ ,,, भाई साहब मैं आपकी शंका का समाधान करने में कितना सफ़ल हुआ हूं यह तो आप ही बता सकते हैं,,,,, आभार आपका,,,,,,

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 5, 2014 at 11:13am

आदरणीय राज बुन्देली साहब ऐसी चौपाई जीवन में प्रथम बार पढ़ रहा हूँ, आदरणीय बृजेश भाई जी ने पहले ही कह दिया है, मैं भी भ्रम में हूँ इस छंद में शायद कुछ और सीखने को मिलेगा.

Comment by बृजेश नीरज on January 5, 2014 at 11:07am

//प्रत्यॆक चरण मॆं १५ मात्रायॆं तुकान्त गुरु+लघु कॆ साथ// एक नयी जानकारी आपकी इस पोस्ट से प्राप्त हुई!

अभी तक जो पढ़ा था, उसके अनुसार- 

//चौपाई मात्रिक सम छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा चरणान्त में जगण और तगण नहीं होता। उदाहरण -

बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥

अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥

चली बरात निसान बजाई। मुदित छोट बड़ सब समुदाई॥
रामहि निरखि ग्राम नर नारी। पाइ नयन फलु होहिं सुखारी॥//

लेकिन यह अप्रूव हुआ है तो जरूर कोई नया तथ्य होगा! इस पोस्ट के बहाने कुछ नया सीखने को मिलेगा.

और गुरु-लघु पदांत के लिए //चकॊरि, हर्षाय, सयानि, खानि, स्वामि// जैसे शब्दों का प्रयोग कहाँ तक उचित है? इस पर भी चर्चा होनी चाहिए.

विद्वजनों और रचनाकार की प्रतिक्रिया के लिए प्रतीक्षारत हूँ!

सादर! 

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