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ग़ज़ल- सारथी || तुम हो कली कश्मीर की ||

तुम हो कली कश्मीर की , कोई फ़ना हो जाएगा 

रब देख ले तुझको अगर , वो भी फ़िदा हो जाएगा /१

कोरा दुपट्टा बांध लो, पतली कमर के खूंट से 

सरकी अगर ये नाज़ से , मौसम खफ़ा हो जाएगा/२

साहिब बहाने से गया, मैं बारहा उसकी गली 

दिख जाये गर शोला बदन , कुछ तो नफा हो जाएगा /३ 

शीशे से नाजुक हुस्न पर, जालिम बड़ी मगरूर है 

दो पल की है ये नाजुकी, फिर सब हवा हो जाएगा /४ 

मुझको सज़ा-ए-मौत दो , शामिल रहा हूँ क़त्ल में 

उनको सुकूँ मिल जाएगी, हक़ भी अदा हो जाएगा/५ 

कोई मुसाफिर भूल कर, जाये उधर तो रोक लो

तफ़सील से समझा उसे, वो गुमशुदा हो जाएगा/६ 

माँ की नजर जो पड़ गई उस पर कभी ईमान से

सच कह रहा हूँ तिफ़्ल भी, कल बादशा हो जाएगा/७ 

भगवान मुझको माफ़ कर, मजबूर हूँ मैं इस कदर

दो जून की रोटी जो दे, मेरा खुदा हो जाएगा/८ 

माने कहाँ गुस्ताख़ दिल, देखे लगाकर टकटकी

नादान है दो पल में ही , सबको पता हो जाएगा/९ 

पैसे के पीछे भागते, इंसान को मत रोकिये

थक जाएगा, फिर हारकर खुद ही जुदा हो जाएगा/१०

शैदाइ सारे हैं जमा , तू सारथी की है ग़ज़ल

घूँघट उठाकर देख लो, सबका भला हो जाएगा/११ 

.........................................................

अरकान : २२१२ २२१२ २२१२ २२१२

सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित 
तर्जुमा: फना = मर मिटना ,तफ़सील =विस्तार से ,तिफ़्ल =बच्चा ,शैदाई =चाहने वाले  

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Comment

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Comment by Ayub Khan "BismiL" on December 7, 2013 at 2:37pm

bahut khoob bahut umdaaaa sabhi ashaar qabile tareef Baidya natha sahab Dili DaaaD Hazir Hai 

Comment by Meena Pathak on December 7, 2013 at 1:53pm

बेहतरीन गज़ल हुई आदरणीय | बधाई कुबूल कीजिये 

कृपया ध्यान दे...

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