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बहुत खूब
जनाब आप तो छा गए
अव्वाम पर पुनः गौर फरमाएं .. मेरे ख्याल से ये अवाम १२१ होता है
गर न खाना मिल सके दो वक़्त,आदत डाल दे,
चार दिन है भुखमरी फिर क़ब्र में आराम है।///
वाह भाई वाह क्या बिम्ब खीचा है आपने। ………। लाजवाब ,ज़ोरदार ग़ज़ल
बहुत बहुत बधाई आपको
गर न खाना मिल सके दो वक़्त,आदत डाल दे,
चार दिन है भुखमरी फिर क़ब्र में आराम है। kya mashvira diya hi ......fir kabr me aaraam hai
मसखरों के हाथ में जनतंत्र की हैं चाबियाँ,
बत्तियाँ सारी बुझा के सो रही अव्वाम है।
bahut hi khoob kaha hai ....sare ke sare sher apni apni chhap chodne me qamyab rahe ...zindabad gazal
......" bekhabar anjaan ho kar so rahi avaam hai" .......
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