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अंतस

 

जब आसमान में काले बादल

नज़र आते हैं

जब रात स्याह और घनी हो जाती है

कोई पथ नहीं दिखता

डर बढ़ जाता है

स्वयं को खोने का

तब मेरे अंदर से आवाज़ आती है

मैं तुम्हारे साथ हूँ

जब दर्द बढ़ जाता है

पीड़ा घनीभूत हो

आँसू बन ढुलकती है

गालों पर मोती सी

तब मेरे अंदर से आवाज़ आती है

मैं तुम्हारे साथ हूँ

जब मेरे ही

मुझे प्रताडित करते हैं

मुझ में विश्वास नहीं कर

मुझे निराश करते हैं,

जब सपने टूटते हैं

कोई कंधा नहीं मिलता

सिर रखकर रोने को

दिलासा देने को,

जब मार्ग अनजाने होते हैं

बाधाएं सिर उठाती हैं

अपने पराये हो जाते हैं

तब मेरे अंदर से आवाज़ आती है

मैं तुम्हारे साथ हूँ

मैं यहां हूँ

मृग के अंदर कस्तूरी की तरह छिपी

ऊर्जा से परिपूर्ण

नये अर्थ, नई संभावनाएँ लिए

बाहर की भटकन छोड़ो

मेरी ओर देखो,

मैं यहां हूँ

अतल गहराइयों में दबी

वह अंतस की शक्ति

मुझे बल देती है

मैं फिर चल पड़ती हूँ

पहले से अधिक दृढता से

आगे बढ़ती हूँ

लक्ष्य की ओर जो है ..

मानवता की महानता को पाने का

नये द्वार, नये नये पथ दिखते हैं,

कोई अलौकिक धवल किरण

प्रकाशित कर जाती है

उस पथ को

और मैं नये रूप मैं

जीवन को

देखने लगती हूँ |

मोहिनी चोरडिया

मौलिक एवं अप्रकाशित रचना 

     

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Comment by mohinichordia on January 7, 2014 at 10:59am

आप सब का हार्दिक धन्यवाद , वंदना जी,  सुशील जी, राम शिरोमणि जी, सौरभ पाण्डेय जी,  विजय मिश्र जी, अरुण निगम जी,

गिरिराज जी , जितेन्द्र जी , विजय जी, आखंद गहमारी जी.   बहुत समय के बाद लौटी हूँ  अतः देर .से आभार व्यक्त कर पाई , माफ करेंगे |

Comment by Vindu Babu on December 22, 2013 at 9:03am

आत्मविश्वास जगाती रचना का कथ्य अच्छा लगा आदरणीया।

सादर बधाई इस सुंदर रचना के लिए।

सादर

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 5:45am

सचमुच आपकी लेखनी प्रभावित करने में सक्षम है.... इस सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई आ0 मोहिनी जी....

Comment by ram shiromani pathak on November 5, 2013 at 9:41am

बहुत ही  सुन्दर  प्रस्तुति आदरणीया मोहिनी  जी आपको बहुत बहुत बधाई …सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 4, 2013 at 11:11pm

दृढ़ विश्वास को शब्द देते भाव अच्े लगे हैं, आदरणीया.

सादर

Comment by विजय मिश्र on November 4, 2013 at 4:53pm
यही जीवन अग्निपथ है और संबल केवल अंतसबल है .इस कठिनाई से समझ में आनेवाली शास्वत सत्य को बहुत ही सुंदर ,सरल शब्दों में अपनी रचना के माध्यम से सहज ही समझा दिया आपने .साधुवाद मोहिनीजी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 3, 2013 at 2:41pm

अंतर्मंथन से निकला सुन्दर मोती, वाह !!!!!!!!!!!!!!

शुभ दीपावली...........

Comment by vijay nikore on November 2, 2013 at 2:12pm

अंतरस्थ वेदनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई, आदरणीया मोहिेनी जी।

सादर,

विजय निकोर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 2, 2013 at 10:26am

मन की अंतर वेदनाओं को, इन सार्थक पंक्तियों में बड़ी ही सुन्दरता से संजोया है आपने, बहुत बहुत बधाई आदरणीया मोहिनी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 1, 2013 at 10:07pm

आदरणीया मोहिनी जी , अंतस की आवाज या कहूँ आत्मा की आवाज़ को बहुत अच्छे से परिभाषित किया आपने !!! ये आवाज़ आती तो सब को है पर सुनते बहुत कम ही हैं !!!! आप सुन पायीं आप भाग्य वान हैं !!!!! आपको बहुत बधाई !!!!

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