For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


सामने

द्वार के
तुम रंगोली भरो   
मैं उजाले भरूँ
दीप ओड़े हुए.. .

क्या हुआ
शाम से
आज बिजली नहीं
दोपहर से लगे टैप बिसुखा इधर
सूख बरतन रहे हैं
न मांजे हुए
जान खाती दिवाली अलग से,
मगर --
पर्व तो पर्व है
आज कुछ हो अलग
आँज लें नैन
सपने सिकोड़े हुए... .

क्या हुआ
हम दुकानों के काबिल नहीं
भींच कर मुट्ठियाँ
क्या मिलेगा मगर !
मैं कहाँ कह रहा--
हम बहकने लगें ?
पर,
कभी तो जियें
ज़िन्दग़ी है अगर.. !
नेह रौशन करे
’मावसी साँझ को,
हम भरोसों भरें
भाव जोड़े हुए.. .
************************
--सौरभ

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 949

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on October 28, 2013 at 6:14pm

वाह वाह वाह हार्दिक बधाई बन्धु श्रेष्ठ वाह 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 28, 2013 at 5:25pm

सामने

द्वार के 
तुम रंगोली भरो   
मैं उजाले भरूँ 
दीप ओड़े हुए.. ...

पढ़कर दिल गद गद हो गया ! पूरी रचना सुन्दर बन पड़ी है ..पठनीय और वन्दनीय भी ! नमन स्वीकारें आदरणीय...बहुत बहुत बधाई  :)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 28, 2013 at 5:06pm

आदरणीय सौरभ जी 

शब्द दर शब्द इस नवगीत की ऊर्जस्वी स्पंदित प्रतिध्वनि अब तक गूँज रही है..

बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय 

मुख्य पंक्तियाँ ही अपने साथ बाँध लेती हैं...

और बन्दों में जिस तरह से दैनिक जीवन के घरेलू झुंझुलाते पक्षों को शामिल किया गया है.. और उससे परे देखते हुए झट स्थाई खुशी पाने का मार्ग दिया गया है... यह तत्व ही नवगीत का प्राण है.

क्या हुआ
हम दुकानों के काबिल नहीं
भींच कर मुट्ठियाँ
क्या मिलेगा मगर !
मैं कहाँ कह रहा--
हम बहकने लगें ?
पर,
कभी तो जियें
ज़िन्दग़ी है अगर.. !........................वाह !
नेह रौशन करे
’मावसी साँझ को, 
हम भरोसों भरें
भाव जोड़े हुए.. .

...इस बंद को तो हर पाठक, हर श्रोता अपने अपने संवेदन स्तर पर निश्चय ही जी ही जाएगा... 

इस सुन्दर प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई

सादर!

Comment by राजेश 'मृदु' on October 28, 2013 at 3:11pm

पर,
कभी तो जियें
ज़िन्दग़ी है अगर.. !
नेह रौशन करे

आदरणीय, आपकी कलम से एक और सुंदर प्रस्‍तुति ताकि हम जिये, जीते रहें, बहुत ही सुंदर, सादर ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 28, 2013 at 9:02am

आदरणीया वन्दनाजी, आपको प्रयास रुचिकर लगा मेरा रचना कर्म सार्थक हुआ.

टैप के बिसुखा जाने का सही अर्थ लगाया है आपने. टैप यानि नल से पानी की कोई उम्मीद नहीं की झल्लाहट उभरी है इस पंक्ति में.

सादर धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 28, 2013 at 8:59am

भाई अतेन्द्र जी, हृदय से धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 28, 2013 at 8:58am

आदरणीय सत्यनारायण जी,  रचना प्रभावकारी लगी इस हेतु मैं हार्दिक रूप से धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ. 

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 28, 2013 at 8:56am

भाई विशाल जी, आपको रचना के भाव प्रभावकारी लगे यह मेरे लिए भी आनन्द की बात है.

हार्दिक धन्यवाद भाईजी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 28, 2013 at 8:55am

आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी, यह सही है कि आज की स्थितियाँ विकट हैं लेकिन जीना तो है न !

आपसे रचना के भावों को अनुमोदन मिला यह मेरे रचना प्रयास को मिला अनुमोदन है.

सादर धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 28, 2013 at 8:53am

भाई रामशिरोमणि जी, आपको मेरा प्रयास तार्किक लगा यह इस प्रस्तुति को मिला पठकीय अनुमोदन है.

बहुत-बहुत धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service