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अब सफ़र का हो शायद अंत..

 

अब सफ़र का हो शायद अंत........

जब तुम नहीं साथ मेरे,

 तो रात  चांदनी का क्‍या करूँ मैं,
उजाले के पथ से गया मै भटक,

अंधेरे का सफ़र अब है मेरे लिए,

तुम्हारे प्यार की तरणी में,

सवार हो चला था मै,

था किसे पता की,

भंवर बिच छोड़ जाओगे,                                                                                           

पर्वती शाम-सी है छाई,

वीराना दिल हुवा मेरा,
असहाय डूबता देख,

इस तरह मुख मोड़ जाओगे,                                                                                           

कुछ वक्त इन लहरों से लड़ते,

मै अब थक हो गया हूँ चूर,
जैसे आगोश में लेने को बेताब लहरे,

पूझे अब किधर जाओगे ?

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Comment by विवेक मिश्र on January 12, 2011 at 4:44pm

seedhee-saadi lekin sundar prastuti. hardik badhaai.

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