पारदर्शी शीशो पर
लगा दी काली चादर
अब बाहर वाले
नही देख सकते
भीतर का हाल
ठीक उसी तरह
जैसे तुमने
अपने चेहरे की
अतुलनीय मुस्कराहट से
बंद कर दिए
भीतर के सभी किवाड़
जो आया जितना आया
सब डालती जा रही हो
अब डर सा
लग रहा हैं मुझे
खिडकियों की
काली चादर
कुरच रही हैं
हवा बाहर की
ओर मुझे
दिखाई दे रही हैं
एक रौशनी सी
जो सब बहा ले जाएगी
अबकी जो ये कमरा
खाली हो जाये तो
बंद मत करना
घुटन सी होती हैं मुझे
आत्मा हूँ तेरी में
इतनी तो कर ही सकती हूँ
मैं मीठी सी एक मनुहार ......
.
."मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
sushil joshi ji bahut aabhar aapka....
अबकी जो ये कमरा
खाली हो जाये तो
बंद मत करना
घुटन सी होती हैं मुझे
आत्मा हूँ तेरी में
इतनी तो कर ही सकती हूँ
मैं मीठी सी एक मनुहार ..... वाह बहुत सुंदर रचना है.... बधाई आ0 सविता जी...
आभार आप सभी गुनी जानो का .......रचना आपको पसंद आई लेखन का उद्देश्य सार्थक हुआ...
क्या बात, बहुत सुन्दर रचना | बधाई स्वीकारें
सुन्दर रचना आदरणीय
बहुत सुंदर रचना है आदरणीया.
आप सभी का स्नेह ओर आशीर्वाद रचना को मिला मन प्रसन्न हो गया .......आशीवाद बनाये रखे.......आभार आपका
आदरनीया सविता जी , बहुत सादगी और सच्चाई भरी मनुहार !!!! सुन्दर रचना , बधाई !!!!
अपनों पर सचमुच इतना हक तो होता है कि उनसे ऐसी मनुहार की जाए ताकि वो फिर व्यवहारी दीवारों या मानसिक बंद दरवाजों/खिडकियों में कैद न कर लें अपने आप को...
बहुत सुन्दर.
हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें इस अतुकान्त रचना के लिए, आदरणीया.
खिडकियों की
काली चादर
कुरच रही हैं
हवा बाहर की
ओर मुझे
दिखाई दे रही हैं
एक रौशनी सी
जो सब बहा ले जाएगी
अबकी जो ये कमरा
खाली हो जाये तो
बंद मत करना
घुटन सी होती हैं मुझे
किसी आत्मीय के अतुकान्त व्यवहार को शिद्दत से उकेरने का प्रयास किया है आपने.
बधाई...
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online