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​गजल: रक्खा है तेरे नाम के पन्ने को मोड़ कर//शकील जमशेदपुरी//

बह्र: 221 2121 1221 212

___________________________________


बिखरे हुए गुलाब की पत्ती को जोड़ कर
रक्खा है तेरे नाम के पन्ने को मोड़ कर

शबनम लगा दी फूल ने भवरे की गाल पे
भवरे ने रख दी गुल की कलाई मरोड़ कर

मुड़-मुड़ के जाते वक्त मुझे देख क्यों रही
जब प्यार ही नहीं तो चली जाओ छोड़ कर

उसने कही ये बात तो गम और बढ़ गया
खुश मैं भी अब नहीं हूं तेरे दिल को तोड़ कर

नफरत को इसलिए तू अखरने लगा ‘शकील’
रख दी गजल में तूने मुहब्बत निचोड़ कर

- शकील जमशेदपुरी

____________________________

*मौलिक एंव अप्रकाशित

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on October 21, 2013 at 1:06am

भवरे ने रख दी गुल की कलाई मरोड़ कर .... वाह क्या रवां दवां मिसरा हुआ है ... शानदार

उसने कही ये बात तो गम और बढ़ गया
खुश मैं भी अब नहीं हूं तेरे दिल को तोड़ कर ... बहुत खूब

नफरत को इसलिए तू अखरने लगा ‘शकील’
रख दी गजल में तूने मुहब्बत निचोड़ कर... वाह वा

बहुत खूब भाई मुकम्मल ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 19, 2013 at 3:42pm

बहुत ही बेहतरीन..ग़ज़ल..शकील साहब....ढेरों..दाद.....

शबनम लगा दी फूल ने भवरे की गाल पे
भवरे ने रख दी गुल की कलाई मरोड़ कर...........बहुत उम्दा तख़य्युल....!!!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 2:02pm

वाह वाह आदरणीय सभी अशआर अच्छे हुए हैं

दिली दाद क़ुबूल करें

जय हो

Comment by Neeraj Neer on October 19, 2013 at 8:49am

बिखरे हुए गुलाब की पत्ती को जोड़ कर
रक्खा है तेरे नाम के पन्ने को मोड़ कर.. वाह बहुत खूब 

Comment by Sushil.Joshi on October 19, 2013 at 7:38am

बिखरे हुए गुलाब की पत्ती को जोड़ कर
रक्खा है तेरे नाम के पन्ने को मोड़ कर....... क्या बात है शकील भाई..... बहुत अच्छे..... अब ज़रा उनका नाम भी बता दीजिए..... हा..हा..हा....... इस सुंदर गज़ल के लिए बधाई स्वीकारें.....

Comment by बृजेश नीरज on October 18, 2013 at 11:18pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है! आपको हार्दिक बधाई!

अन्य सदस्यों की रचनायें भी पढ़ें और उन पर टिप्पणी करें! जिससे अन्य सदस्य भी आपके ज्ञान का लाभ उठा सकें!

सादर!

Comment by Pankaj Mishra on October 18, 2013 at 9:48pm

वाह बहुत खूब ....शकील जी ...

Comment by शकील समर on October 18, 2013 at 9:22pm

आदरणीय Nilesh ShevgaonkarNilesh Shevgaonkar और Nilesh Shevgaonkar जी। आप सबका आभार।

Comment by शकील समर on October 18, 2013 at 9:20pm

आदरणीय Saurabh Pandey जी
गजल पसंद आई, इसके लिए आपका का आभार।

'गाल' के लिंग भेद में गलती हो गई, जिसे सुधार लूंगा।

पुन: आभार।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 18, 2013 at 8:43pm

वाह , बहुत ख़ूब 
.
उसने कही ये बात तो गम और बढ़ गया
खुश मैं भी अब नहीं हूं तेरे दिल को तोड़ कर
वाह 

कृपया ध्यान दे...

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