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सार्थक दशहरा (कविता)-अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

सार्थक दशहरा

***************

धर्म की विजय हुई त्रेता में, राम ने मारा रावण को।

उसकी याद में हमने भी, हर साल जलाया रावण को॥                                 

कलियुग में मायावी रावण, रूप बदलकर आता है।              

वो भ्रष्टाचारी,  अत्याचारी,  अनाचारी कहलाता है॥          

अधर्मी रावण का पुतला, हर बरस जलाया जाता है।        

कई रूप में अंदर बैठा रावण, हँसता है, मुस्काता है॥              

अपने अंदर के रावण को , आओ, पहले जलायें हम।            

फिर कंधे में बिठा बच्चे को, रावण दहन दिखायें हम॥

****************************************************

-अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव, धमतरी ( छत्तीसगढ़ )

मौलिक- अप्रकाशित

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Comment

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 17, 2013 at 11:08pm

हार्दिक धन्यवाद आ. विजय मिश्रजी, आ. महिमाजी ,  आ. सौरभ भाई , आ.  प्राचीजी आप सभी ने छोटी सी सामयिक रचना को सराहा पसंद किया । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 6:57pm

बहुत सुन्दर कविता हुई है. प्रवाह भी उत्तम है. बधाई स्वीकारें आदरणीय.

सादर

Comment by बृजेश नीरज on October 16, 2013 at 9:34pm

आदरणीय अखिलेश जी मेरे संशय को दूर करने के लिए आपका हार्दिक आभार!

आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें! ये प्राथमिकता है! बाकी चीज़ें होती रहेंगी!

सादर!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 16, 2013 at 8:42pm

आदरणीय बृजेश नीरज जी अभी मैं किसी खास विधा और मात्राओं  से मुक्त होकर अपनी कविता मुक्त छंद की तरह लिख रहा हूँ , पद्य लयात्मक रहे इस बात का प्रयास करता हूँ । ओ बी ओ की हिंदी कक्षा का मैं छात्र हूँ आप सभी श्रेष्ठ रचनाकारों के सानिंध्य में सफलता की उम्मीद् है ।.पिछले पाँच दिनों से ज्वर से जूझ रहा हूँ और धमतरी में नेट की समस्या भी बनी रहती है  इसलिए आपकी टिप्पणी कुछ देर पहले ही पढ़ पाया । ..... सादर ।     

 

Comment by MAHIMA SHREE on October 15, 2013 at 10:58pm

अपने अंदर के रावण को , आओ, पहले जलायें हम।            

फिर कंधे में बिठा बच्चे को, रावण दहन दिखायें हम॥... सुंदर भाव है आदरणीय .. बधाई आपको

Comment by बृजेश नीरज on October 15, 2013 at 10:38pm

आदरणीय रचना पर कुछ कहने से पहले आपसे ये जानने की इच्छा है कि ये रचना है किस विधा में!

सादर!

Comment by विजय मिश्र on October 15, 2013 at 6:57pm
श्यामजी , सार्थक रचना . बधाई
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 15, 2013 at 3:59pm

 हार्दिक धन्यवाद,  श्याम वर्माजी, अरुण शर्माजी , जितेंद्र जी, आशुतोष मिश्रजी, अभिनव अरुण जी, सुशील जोशीजी , छोटे भाई कपीश एवं गिरिराज आप सभी ने छोटी सी सामयिक रचना को सराहा पसंद किया । 

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 5:17am

भावों का सुंदर समावेश..... एक संदेश देती हुई इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अखिलेश जी....

Comment by Abhinav Arun on October 14, 2013 at 7:17pm

अपने अंदर के रावण को , आओ, पहले जलायें हम।            

फिर कंधे में बिठा बच्चे को, रावण दहन दिखायें हम॥

..........सुन्दर सामयिक कामना श्री अखिलेश जी हार्दिक बधाई और साधुवाद इस संदेशपरक रचना के लिए

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