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त्रिभंगी छंद ( प्रकृति को समर्पित)............ डॉ० प्राची

छंद त्रिभंगी : चार पद, दो दो पदों में सम्तुकांतता, प्रति पद १०,८,८,६ पर यति, प्रत्येक पद के प्रथम दो चरणों में तुक मिलान, जगण निषिद्ध 

रज कण-कण नर्तन, पग आलिंगन, धरती तृण-तृण, अर्श छुए  

कर तन मन चंचल, फर-फर आँचल, मुक्त उऋण सी, पवन बहे

सुन क्षण-क्षण सरगम, अन्तर पुर नम, विलयन संगम, भाव बिंधे

सुन्दरतम नियमन, श्रुति अवलोकन, लय आलंबन,  सृजन सुधे 

मौलिक और अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 23, 2013 at 2:43pm

वीनस जी,

आपके कहे से पूर्णतः सहमत हूँ कि " छन्द का मूल विधान भी दर्शाना चाहिए"....सो विधान को मूल पोस्ट के साथ एड कर दिया गया है. 

भाईजी ये रचना एक विशेष मनोदशा की उत्पत्ति है, जिसमें प्रकृति की ख़ूबसूरती और अनंत विस्तार को प्रकृति का अभिन्न अंश बन कर उसमें लीन हो कर जी जाने का वर्णन है..

इस छंद रचना पर आपकी शुभकामनाओं के लिए हृदय से आभारी हूँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 23, 2013 at 2:26pm

रचना पर उत्साहवर्धक अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार आ० मीना पाठक जी, आ० वंदना जी, आ० सुरेन्द्र शुक्ला जी, आ० नीरज कुमार नीर जी, आ० अभिनव अरुण जी.

आप सबकी शुभकामनाओं और प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद 

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 23, 2013 at 2:22pm

छंदबद्ध रचना पर उत्साहवर्धक अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेई जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 23, 2013 at 2:21pm

आदरणीय अखिलेश श्रीवास्तव जी 

आपको यह रचना पसंद आई और आपने लेखन को मान दिया ..इस हेतु आपकी आभारी हूँ..

रचना की संप्रेषणीयता पाठकों तक यथा पहुँच सके तो रचनाकार लेखन के प्रति आश्वस्त होता है. आपकी सजग पाठकीयता के लिए धन्यवाद.

सादर 

Comment by राजेश 'मृदु' on September 23, 2013 at 12:47pm

बहुत ही सुंदर रचना । छंद त्रिभंगी ना भी हो तो भी आपकी शब्‍दावली कुछ इस तरह की होती है जो बरबस अंतर को आंदोलित करती हैं पर इस आंदोलन में हाहाकार नहीं होता है एक मधुसिक्‍तता होती है जो कांत भाव से सबकुछ आच्‍छादित कर लेती है जैसे नुपूर की ध्‍वनि  कभी दूर कभी पास से आती -जाती रहती हो, सादर

Comment by रविकर on September 23, 2013 at 12:09pm

शुभ छंद त्रिभंगी, है सतरंगी, कुदरत वर्णन, श्रेष्ठ हुआ |
शुभ भाव अनोखे, अक्षर चोखे, शब्द संचयन, हृदय छुआ ||

शुभकामनायें आदरेया

Comment by Meena Pathak on September 22, 2013 at 7:54am

रज कण-कण नर्तन, पग आलिंगन, धरती तृण-तृण, अर्श छुए  

कर जुल्फें चंचल, फर-फर आँचल, मुक्त उऋण सी, पवन बहे........... बहुत सुन्दर रचना, बधाई आ० प्राची जी 

Comment by vandana on September 22, 2013 at 7:19am

बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया डॉ. साहिबा 

Comment by वीनस केसरी on September 21, 2013 at 11:18pm

आदरणीया
त्रिभंगी छन्द के लिए हार्दिक बधाई

जैसे ग़ज़ल की पोस्ट में मात्रा दर्शा दिया जाता है छन्द का मूल विधान भी दर्शाना चाहिए
साथ ही इसका हिन्दी भावार्थ भी प्रकाशित कीजिये जिससे इस उच्च स्तरीय रचना को नए आयाम से समझा जा सकते और आनंद बढ़े
सादर

Comment by MAHIMA SHREE on September 21, 2013 at 9:58pm

बेहद सुंदर  त्रिभंगी छंद शब्द संयोजन कमाल का .... बहुत -२ हार्दिक बधाई आपको आदरणीया प्राची जी

कृपया ध्यान दे...

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