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अंतिम योद्धा

हाँ

मैं पिघला दूँगा अपने शस्त्र

तुम्हारी पायल के लिए

और धरती का सौभाग्य रहे तुम्हारे पाँव

शोभा बनेंगे

किसी आक्रमणकारी राजा के दरबार की

फर्श पर एक विद्रोही कवि का खून बिखरा होगा !

 

हाँ

मैं लिखूंगा प्रेम कविताएँ

किन्तु ठहरो तनिक

पहले लिख लूँ एक मातमी गीत

अपने अजन्मे बच्चे के लिए

तुम्हारी हिचकियों की लय पर

बहुत छोटी होती है सिसकारियों की उम्र

 

हाँ

मैं बुनूँगा सपने

तुम्हारे अन्तः वस्त्रों के चटक रंग धागों से

पर इससे पहले कि उस दिवार पर -

जहाँ धुंध की तरह दिखते हैं तुम्हारे बिखराए बादल

जिनमें से झांक रहा हैं एक दागदार चाँद !

वहीं दूसरी तस्वीर में

किसी राजसी हाथी के पैरों तले है दार्शनिक का सर !

- मैं टांग दूँ अपना कवच

कह आओ मेरी माँ से कि वो कफ़न बुने

मेरे छोटे भाइयों के लिए

मैं तुम्हारे बनाए बादलों पर रहूँगा

 

हाँ

मुझे प्रेम है तुमसे  

और तुम्हे मुर्दे पसंद हैं !

 .

 .

 .

अरुन श्री !
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 660

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 21, 2013 at 7:53pm

जहाँ धुंध की तरह दिखते हैं तुम्हारे बिखराए बादल

जिनमें से झांक रहा हैं एक दागदार चाँद !

वहीं दूसरी तस्वीर में

किसी राजसी हाथी के पैरों तले है दार्शनिक का सर !

- मैं टांग दूँ अपना कवच

कह आओ मेरी माँ से कि वो कफ़न बुने

मेरे छोटे भाइयों के लिए

मैं तुम्हारे बनाए बादलों पर रहूँगा

प्रिय अरुण  जी ...अद्भुत ...निराली रचना ...पढ़ते सोचते उलझे ही रह गया कुछ पल ...प्रेम में सब जायज है ?...भ्रमर ५ 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 21, 2013 at 6:31pm

अद्भुत रचना, आदरणीय अरुण भाई ! निशब्द हूँ ! समझ नही आता किन शब्दों में प्रशंसा करूँ ! पूरी रचना लाजवाब और अंतिम पंक्तियों का तो कहना ही क्या.....

मैं टांग दूँ अपना कवच

कह आओ मेरी माँ से कि वो कफ़न बुने

मेरे छोटे भाइयों के लिए

मैं तुम्हारे बनाए बादलों पर रहूँगा

 

हाँ

मुझे प्रेम है तुमसे  

और तुम्हे मुर्दे पसंद हैं

इस अप्रतिम रचना के लिए अनंत बधाइयाँ स्वीकारें भाई,  !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 21, 2013 at 5:02pm

बेहतरीन रचना ....अत्यंत  गंभीर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 21, 2013 at 3:14pm

अगर आपने यह कविता पृथ्वीराज को पढा दी होती तो, शायद भारत आक्रांताओं से बच गया होता :)। सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2013 at 2:08pm

वाह !!!!!!  अरुण भाई वाह !!!! आपने भाव प्रवाह मे ऐसे बहा दिया , मेरे शब्द गुम हो गये है !! समझ नही पारहा हूँ तारीफ कैसे करूँ !!   बहुत बहुत बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

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