For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपनी आवारा कविताओं में -

पहाड़ से उतरती नदी में देखता हूँ पहाड़ी लड़की का यौवन ,

हवाओं में सूंघता हूँ उसके आवारा होने की गंध ,

पत्थरों को काट पगडण्डी बनाता हूँ मैं !

लेकिन सुस्ताते हुए जब भी सोचता हूँ प्रेम -

तो देह लिखता हूँ !

जैसे खेत जोतता किसान सोचता है फसल का पक जाना !

 

और जब -

मैं उतर आता हूँ पूर्वजों की कब्र पर फूल चढाने -

कविताओं को उड़ा नदी तक ले जाती है आवारा हवा !

आवारा नदी पहाड़ों की ओर बहने लगती है !

रहस्य नहीं रह जाते पत्थरों पर उकेरे मैथुनरत चित्र !

चाँद की रोशनी में किया गया प्रेम सूरज तक पहुँचता है !

चुगलखोर सूरज पसर जाता पहाड़ों के आंगन में !

जल-भुन गए शिखरों से पिघल जाती है बर्फ !

बाढ़ में डूब कर मर जाती हैं पगडंडियाँ !

 

मैं तय नहीं पाता प्रेम और अभिशाप के बीच की दूरी !

किसी अँधेरी गुफा में जा गर्भपात करवा लेती है आवारा लड़की !

आवारा लड़की को ढूंढते हुए मर जाता है प्रेम !

अभिशाप खोंस लेता हूँ मैं कस कर बांधी गई पगड़ी में ,

और लिखने लगता हूँ -

अपने असफल प्रेम पर “प्रेम की सफल कविताएँ” !

 

लेकिन -

मैं जब भी लिखता हूँ उसके लिए प्रेम तो झूठ लिखता हूँ !

प्रेम नहीं किया जाता प्रेमिका की सड़ी हुई लाश से !

अपवित्र दिनों के रक्तस्राव से तिलक नहीं लगता कोई योद्धा !

 

दुर्घटना के छाती पर इतिहास लिखता हुआ युद्धरत मैं -

उस आवारा लड़की को भूल जाऊंगा एक दिन ,

और वो दिन -

एक आवारा कवि का बुद्ध हो जाने की ओर पहला कदम होगा !

 

 

 

 

.

............................................................... अरुन श्री !
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 797

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arun Sri on January 24, 2014 at 7:44pm

Sulabh Agnihotri सर , बहुत खुशी होती है जब ऐसी कविताओं को आप जैसे पाठक मिलते हैं ! लगता है कि लिखना निरर्थक नहीं हुआ ! वर्ना मुझे तो नकारे जाने का डर लगा रहता है ! हौसला बढ़ाने के लिए बहुत धन्यवाद आपको !

Comment by Sulabh Agnihotri on January 23, 2014 at 8:39pm

लेकिन सुस्ताते हुए जब भी सोचता हूँ प्रेम .
तो देह लिखता हूँ !
जैसे खेत जोतता किसान सोचता है फसल का पक जाना !
---------
रोंगटे खड़े कर दिये यार
एक-एक पंक्ति को लेने की जरूरत नहीं समझता मैं -
जब आपने लिखा तो पहले एक-एक शब्द को अंतश्चेतना में जिया होगा उसे
जितनी तारीफ की जाये कम है
ऐसी धार बहुत कम देखने को मिलती है।
बधाई कुबूल करें अरुन जी !

Comment by Arun Sri on December 11, 2013 at 12:07pm

Saurabh Pandey  सर , आपकी प्रतीक्षा थी ! आख़िरकार सफल हुआ मैं ! :-))))))
जो आलोचना करने में भी सामान रूप से समर्थ हो उनके द्वारा इतनी उदात्त सराहना आत्ममुग्ध कर रही है ! आपके विचारों को मैं एक कसौटी के तौर पर देखता हूँ ! परीक्षा में बैठने के पहले वाला डर भी रहता है ! अभी अच्छे नंबरों से पास ही जाने की खुशी है ! :-)))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 10, 2013 at 10:35pm

भाई अरुण श्री, सबसे पहले हृदय से बधाई इस समर्थ कविता और इतनी सुगढ़ शैली के लिए.


भाई, आपकी यह कविता देह और देहातीत के द्वंद्व को इतनी गहराई से छूती है कि रोमांच हो आता है. वृत्तियों पर कब किसी का अधिकार बना है ? कारण, ’असंप्रज्ञात समाधि की अवस्था’ का सिद्धांत भी इच्छा जगाये रहता है निर्विकल्पता की. ’इच्छाएँ’ ही देह के पार देखने देतीं हैं. अन्यथा देहानुभूति से परे जाना पाना या उसके व्यवहार से विलग होना, इतना सहज कब रहा है !? तो इसके लिए एक उपाय हुआ. गीता के तेरहवें अध्याय में कि इस क्षेत्र (खेत) के क्षेत्रज्ञ बन जाने का. और उसका व्यवहार कितनी गहनता से यह कविता पढ़ती चलती है !

आखिरी कुछ पंक्तियाँ रगों में तो सिहरन पैदा कर देती हैं. बुद्धत्व एक पराकाष्ठा है जो मुझे शिवत्व का एक दूसरा नाम लगता है. शिव द्वारा शरीर को गूँथना और नये देह शास्त्र की रचना को उद्यत होना ! ..ओह, यह बहुत गूढ़ इंगित है भारतीय वांगमय का. उसे बुद्धत्व कह कर आपने तनिक डिप्लोमेसी दिखायी है.. ;-))))
 
भाई, बहुत बड़े कैनवास या फलक की कविता है.
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ

Comment by Arun Sri on December 7, 2013 at 7:30pm

 गिरिराज भंडारी सर , बहुत धन्यवाद जो आपने सराहा ! वरिष्ट जनों की सराहना सदा ही कुछ अधिक प्रसन्नता का कारण बनती है ! सादर ! :-))))))))

Comment by Arun Sri on December 7, 2013 at 1:38pm

rajesh kumari  मैम , आप ने न सिर्फ कविता को सराहा बल्कि कवि की भावभूमि पर उतर कर उसका मान भी बढ़ाया ! आपको हार्दिक धन्यवाद ! सादर !

Comment by Arun Sri on December 7, 2013 at 1:25pm

 राजेश 'मृदु' सर , बहुत बहुत धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on December 7, 2013 at 11:02am

Baidya Nath 'सारथी'  सर , बनाए गए शब्दचित्र यथावत आप तक पहुंचे और प्रभावित कर सके तो सफलता है ! सादर धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on December 7, 2013 at 10:55am

 hemant sharma सर , उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद आपको !  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 6, 2013 at 3:34pm

प्रेम और वासना को परिभाषित  करती आपकी ये कविता लीक से हट कर लगी ,

दुर्घटना के छाती पर इतिहास लिखता हुआ युद्धरत मैं -

उस आवारा लड़की को भूल जाऊंगा एक दिन ,

और वो दिन -

एक आवारा कवि का बुद्ध हो जाने की ओर पहला कदम होगा !

 जब मस्तिष्क से वासना रुपी जानवर की मौत होती है तब प्रेम का जन्म होता है तो कवी बुद्ध बनता है ...गहन से गहनतम भावों को उकेरती ये प्रस्तुति कवी के आक्रोशित मन को दर्शाती कहीं -कहीं विभत्स रूप से उद्वेलित भी करती है, जो कवी के गहनतम आक्रोश पूर्ण मनोस्थ्ती की और इशारा करती है,बहुत बहुत बधाई आपको अरुण श्री जी इस रचना पर  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service