For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हाँ

मैं पिघला दूँगा अपने शस्त्र

तुम्हारी पायल के लिए

और धरती का सौभाग्य रहे तुम्हारे पाँव

शोभा बनेंगे

किसी आक्रमणकारी राजा के दरबार की

फर्श पर एक विद्रोही कवि का खून बिखरा होगा !

 

हाँ

मैं लिखूंगा प्रेम कविताएँ

किन्तु ठहरो तनिक

पहले लिख लूँ एक मातमी गीत

अपने अजन्मे बच्चे के लिए

तुम्हारी हिचकियों की लय पर

बहुत छोटी होती है सिसकारियों की उम्र

 

हाँ

मैं बुनूँगा सपने

तुम्हारे अन्तः वस्त्रों के चटक रंग धागों से

पर इससे पहले कि उस दिवार पर -

जहाँ धुंध की तरह दिखते हैं तुम्हारे बिखराए बादल

जिनमें से झांक रहा हैं एक दागदार चाँद !

वहीं दूसरी तस्वीर में

किसी राजसी हाथी के पैरों तले है दार्शनिक का सर !

- मैं टांग दूँ अपना कवच

कह आओ मेरी माँ से कि वो कफ़न बुने

मेरे छोटे भाइयों के लिए

मैं तुम्हारे बनाए बादलों पर रहूँगा

 

हाँ

मुझे प्रेम है तुमसे  

और तुम्हे मुर्दे पसंद हैं !

 .

 .

 .

अरुन श्री !
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 658

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arun Sri on October 8, 2013 at 11:30am

आप सभी का हार्दिक आभार जो आपने इस कविता को मान दिया  ! सादर धन्यवाद !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 11:52am

मन को उद्वेलित कर देती सी रचना..

एक भाव अभिव्यक्ति यह भी सही 

सादर शुभेच्छाएं 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 23, 2013 at 5:59pm

आदरणीय अरुन श्री भाई केवल एक ही शब्द आया इस रचना को पढ़कर निःशब्द हृदयतल से बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by राजेश 'मृदु' on September 23, 2013 at 12:55pm

अद्भुत रचना, अप्रतिम भाव । बहुत सुंदर प्रस्‍तुति, सादर

Comment by रविकर on September 23, 2013 at 12:30pm

गजब विद्रोह-
लेती है मोह
आपकी रचना
शुभकामनायें आदरणीय-

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 22, 2013 at 10:53am

बेहद सुंदर रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुनश्री जी

Comment by Meena Pathak on September 22, 2013 at 7:57am

हाँ
मुझे प्रेम है तुमसे
और तुम्हे मुर्दे पसंद हैं !
.
बहुत-बहुत सुन्दर रचना ..बहुत बहुत बधाई आप को

Comment by vandana on September 22, 2013 at 7:15am

सशक्त रचना आदरणीय 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 22, 2013 at 3:01am

हृदय हारिणी हाड़ारानी के इस देश में विसंगतियों से पगी चाहतों का कोई पारावार नहीं रहा है.


जहाँ एक सुहागिन अपने सिर को थाल में मात्र इसलिए पेश करवा देती है कि उसका पुरुष उसके सौंदर्य में आबद्ध हो अपनी तलवार की चमक से बिदक, कहीं युद्ध क्षेत्र में अपने कर्तव्य मार्ग से हिल न जाये. वहीं एक योद्धा अपनी विवशता और हताशा को अभिव्यक्त करता हुआ निरुपाय-सा दीखता है, जिसके कर्तव्यों को जंग कोई और नहीं बल्कि उसके अनन्य वाम अंग का लालित्य ही होता है !

हद तो यह है कि इन्हीं संदर्भों में एक महारानी मात्र अपने मनस रंजन के लिए नदी में यात्रियों से भरी नाव को इसलिये उलटवा देती है कि उसे देखना होता है कि डूबते हुए लोग कैसे लगते हैं ! और उस महारानी के पुरुष का देहमोह उसकी कुत्सित इच्छाओं को पूरा करते हुए लज्जित तक नहीं होता. दैहिक प्रेम की यह अत्यंत क्लिष्ट मनोदशा है. 

किसी निरुपाय योद्धा या किसी कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति की ऐसी का-पुरुषी विवशताओं को शब्दबद्ध करना किसी रचनाकार का सामाजिक दायित्व के प्रति अदम्य निष्ठा का प्रतीक है जिससे भटकने का लेश मात्र डर भी इस रूप में अभिव्यक्त होता है.

एक सशक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई, अरुण श्री.

एक बात:
वैसे, एक अनुरोध अवश्य है, कि ऐसी रचनाओं का वायव्य भाव अति क्लिष्ट तो होता है, किन्तु, साथ ही, अत्यंत विरल भी होता है. जिसकी दशा महीनों या वर्षों चित्त पर हावी रहती है. इस भावदशा से बचे रहें.
शुभेच्छाएँ

Comment by annapurna bajpai on September 22, 2013 at 12:53am
निशब्द करती आपकी रचना , आपको बहुत बधाई आदरणीय अरुण जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
8 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
14 hours ago
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
14 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
14 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
15 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service