For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल:ना जाने हक़ीक़त है वहम है की फ़साना

मंज़िल पे खड़ा हो के सफ़र ढूँढ रहा हूँ
हूँ साए तले फिर भी शजर ढूँढ रहा हूँ

औरों से मफ़र ढूँढूं ये क़िस्मत कहाँ मेरी?
मैं खुद की निगाहों से मफ़र ढूँढ रहा हूँ 

दंगे बलात्कार क़त्ल-ओ-खून ही मिले
अख़बार मे खुशियों की खबर ढूँढ रहा हूँ

शोहरत की किताबों के ज़ख़ायर नही मतलूब
जो दिल को सुकूँ दे वो सतर ढूँढ रहा हूँ

ना जाने हक़ीक़त है वहम है की फ़साना 
वाक़िफ़ नही मंज़िल से मगर ढूँढ रहा हूँ

ये हिंदू का शहर है वो मुसलमान की बस्ती
बस वो ही नही मैं जो नगर ढूँढ रहा हूँ

माँ मुझको खिलौनों की नही कोई ज़रूरत
बस तेरी मोहब्बत की नज़र ढूँढ रहा हूँ


-सालिम शेख
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 851

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on September 28, 2013 at 12:14pm
गजल उम्दा है हर माएने में और हर नजरिये से , इंसान कहीं खो गया है इस मजहबी सियासत में . बेहतरीन ,सलीम भाई दिल से शुक्रिया .
Comment by saalim sheikh on September 23, 2013 at 3:59pm

हौसला अफज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आशुतोष जी

Comment by saalim sheikh on September 23, 2013 at 3:57pm

आदरणीय वीनस जी आपके ये दो बोल मेरे लिए बेहद महत्व रखते हैं, आपकी इस टिप्पणी ने निराशा के कितने बादल छांट दिए और मेरे हौसले कितने बुलंद कर दिए ये मैं आपको बता नही सकता,और तक्तीअ का हुनर भी आपके लेख पढ़ कर धीरे धीरे सीख रहा हूँ, आदरणीय आपका बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by वीनस केसरी on September 21, 2013 at 10:37pm

वाह भाई जी शानदार प्रयास है .. इतनी कठिन बहर को लय के आधार पर निभा ले जाना कोई हँसी खेल नहीं है मगर अपने कई अशआर में ये कारनामा बखूबी करके दिखाया है ... हाँ कुछ जगह नाकामी भी हाथ लगी है मगर आज ऐसा है तो कल तक्तीअ का हुनर पा कर क्या क्या शानदार ग़ज़लें आप कहेंगे यही सोच कर दिल खुश हो जाता है

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 20, 2013 at 4:31pm

सालिम भाई ..हर शेर अच्छा लगा ..इस मंच से हम सब एक दुसरे के साथ सीख रहे हैं ,,यह बड़ा सुखद है ..ढेरों बधाईयों के साथ 

Comment by saalim sheikh on September 20, 2013 at 2:35pm

आदरणीय अरुण जी सराहना के लिए धन्यवाद, और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत बहुत धन्यवाद, बह्र के बारे मे जानकारी अभी अधूरी है, धीरे धीरे तिलक जी के लेख समझने की कोशिश कर रहा हूँ,अगली पोस्ट में कोशिश करूँगा की बाबह्र ग़ज़ल कह सकूँ

Comment by saalim sheikh on September 20, 2013 at 2:24pm

हौसला अफज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणिया महिमा जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 19, 2013 at 9:58pm

सालिम भाई हार्दिक आभार आपने रुक्न बताये यदि मैं इस हिसाब से तक्तीय करता हूँ तो कई शेर बेबहर हो रहे हैं मात्राएँ इधर उधर हो रही है कृपया एक बार अप भी देख लें. खैर प्रयास आपका बहुत ही अच्छा है भाव बेहद अच्छे है इस हेतु मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.

Comment by MAHIMA SHREE on September 19, 2013 at 9:11pm

ना जाने हक़ीक़त है वहम है की फ़साना 
वाक़िफ़ नही मंज़िल से मगर ढूँढ रहा हूँ

ये हिंदू का शहर है वो मुसलमान की बस्ती
बस वो ही नही मैं जो नगर ढूँढ रहा हूँ....

माँ मुझको खिलौनों की नही कोई ज़रूरत
बस तेरी मोहब्बत की नज़र ढूँढ रहा हूँ...... बहुत ही बढ़िया ... बधाई आपको

Comment by Abhinav Arun on September 19, 2013 at 7:03pm

लिखते - सीखते रहिये रवानी आ जाएगी भाव और कहन - प्रयास अच्छे हैं बहुत शुभकामनायें !1

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service