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कुण्डलिया [ हिंदी दिवस]

शान है मातृभूमि की, देश का स्वाभिमान ,
हिंदी बिंदी मात की, यह मेरा अभिमान //
यह मेरा अभिमान, अधिकार है यह सबका ;
दो इसको विस्तार, है कर्तव्य जन जन का ;
हिंदी दिन को आज, देना यह सम्मान है
अपनाओ सब मीत ,इसमें इसकी शान है //

................मौलिक व अप्रकाशित ..............

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 24, 2013 at 7:28pm

प्रिय सरिता जी ,

तथ्यपरक सुन्दर कथ्य है कुंडलिया का.. पर शिल्पगत त्रुटियाँ रह गयी हैं 

रोला के शिल्प को पुनः देखें..

सादर शुभेच्छाएँ 

Comment by Sarita Bhatia on September 18, 2013 at 8:10pm

भाई राम जी तह दिल से शुक्रिया 

Comment by Sarita Bhatia on September 18, 2013 at 8:10pm

आदरणीया विजय श्री जी शुक्रिया 

Comment by Sarita Bhatia on September 18, 2013 at 8:09pm

आदरणीया बहन अन्नपूर्णा जी शुक्रिया 

Comment by Sarita Bhatia on September 18, 2013 at 8:08pm

आदरणीय विजय निकोर जी हार्दिक आभार 

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 7:20pm

सुंदर कुण्डलियाँ आदरणीया सरिता जी ,आपको बधाई//सादर,

Comment by vijayashree on September 18, 2013 at 4:58pm

सरिता जी  निज भाषा के सम्मानस्वरुप सुंदर कुण्डलियाँ 

हार्दिक बधाई 

Comment by annapurna bajpai on September 18, 2013 at 1:36pm
आ0 सरिता जी सुंदर कुण्डलिया हेतु बहुत बधाई आपको ।
Comment by vijay nikore on September 18, 2013 at 12:53pm

कुण्ड्लिया अच्छी बनी है। आपको बधाई, आदरणीया सरिता जी।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 17, 2013 at 8:28pm

प्रिय सरिता बहुत सुन्दर प्रयास कुण्डलिया पर बहुत बहुत बधाई ,उत्कृष्ट भाव ,बस अंतिम पद में चूक हो गई
व्यवहार में लाकर बढ़ानी तभी शान है // व्यवहार में लाकर ---लाकर २ १ १ हो रहा है जब की रोले में विषम चरण का अंत गुरु लघु २ १ से होता है बाकी रोले आपके ठीक हैं ,इसे आप आसानी से दुरुस्त कर सकती हैं

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