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2122   1212     22 

धूप हमको निचोड़ देती है ,

ठंड घुटने सिकोड़ देती है ।

 

पत्तियों को बड़ी शिकायत है,

ये जड़ें भूमि छोड़ देती हैं।

 

चर्चा मुद्दे पे जब भी आती है,

जाने क्यूँ राह मोड़ देती है ।

 

दर खुले ही थे, हमने ये देखा,

ये हवा फिर से भेड़ देती है ।

 

रहनुमाओं की बातें सुन के तो,   

शर्म ख़ुद हाथ जोड़ देती है ।


हाल जैसे ही क़ाबू आता है,

याद क्यों फ़िर से छेड़ देती है ?

 मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 6:37pm
आदरणीया प्राची जी , गलतियां बताने के लिये और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार !! आगे ज़रूर सुधार करूंगा !!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 5:43pm

आदरणीय हेमन्त भाई , गज़ल की सराहना केलिये आपका हर्दिक आभार !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 5:39pm

आदरणीया विजया श्री जी , गलतियाँ नज़र अन्दाज़ कर के भी आपने उत्साह वर्धन किया , आपका बहुत आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 5:37pm

वीर भाई , बहुत बहुत शुक्रिया हौसला अफज़ाई के लिये !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 11, 2013 at 4:56pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी 

बहुत सुन्दर गज़ल प्रयास.

हमकवाफी शब्दों का चौथे और छठे शेर में पालन नहीं हुआ है.. और दूसरे शेर के अंत में  है की जगह हैं  लिया जाना दोष माना जाएगा.

शिल्प कथ्य अभी और कसावट की मांग रखते हैं.. गज़लकार इसपर अवश्य ही चर्चा करेंगे.

सादर शुभकामनाएँ 

Comment by hemant sharma on September 10, 2013 at 11:11pm

आदरणीय गिरिराज जी बहुत ही सुन्दर, सामयिक गजल .............बधाई

Comment by annapurna bajpai on September 10, 2013 at 10:21pm
वाह !!!! आदरणीय भण्डारी जी बहुत बधाई आपको ।
Comment by vijayashree on September 10, 2013 at 1:23pm

चर्चा मुद्दे पे जब भी आती है,

जाने क्यूँ राह मोड़ देती है ।

बहुत खूब गिरिराज भंडारी जी  बधाई स्वीकारें    

Comment by Anil Chauhan '' Veer" on September 10, 2013 at 9:03am

बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल है सर ..... हार्दिक बधाई  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 10, 2013 at 7:07am

आदरणीय वन्दना जी , आप सही भी हो सकती हैं !! काफिया मे गलती मुझसे होती है , एक बार पूरी गज़ल खारिज हुई है !! मै फिर से पढूंगा !! आपका आभार !!

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