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वेद महान सुज्ञान सुनो उसमे सब विश्व रहस्य समाहित
किन्तु उपेक्षित से लगते अवमूल्यन नैतिकता दिखता नित
कोश न पुण्य प्रसून रहे कितना करते तुम पाप उपार्जित
जीवन में असुरत्व बढ़ा व कुतर्क बड़ा अब धर्म पड़ा चित

विश्व सनातन धर्म गहे मत त्याग इसे अपना कर भारत!
खोज महागुरु भी निज के हित ज्ञान स्वकोश बना कर भारत!
छोड़ विकार सभी मन के तन को तपनिष्ठ घना कर भारत!
इन्द्र रहें हवि से बलवान स्वपौरुष की रचना कर भारत!

रचनाकार - डॉ आशुतोष वाजपेयी
लखनऊ

पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित रचना 

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Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on September 10, 2013 at 12:56pm

abhaar arun sharma ji

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 6, 2013 at 2:08pm

अहा!!!! सुन्दर अति सुन्दर आदरणीय बहुत ही सुन्दर छंद आनंद आ गया ढेरों बधाई स्वीकारें.

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on September 6, 2013 at 10:33am

केवल जी जितेन्द्र जी ब्रजेश जी मीना जी आप सभी को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ मेरी रचना को इतना मान प्रदान करने के लिए.......बहुत बहुत आभार 

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on September 6, 2013 at 10:31am

प्रभूत आभार राम शिरोमणि जी 

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on September 6, 2013 at 10:30am

प्रभूत आभार लक्ष्मण प्रसाद जी आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on September 6, 2013 at 10:29am

प्रभूत आभार अन्नपूर्णा जी 

Comment by Meena Pathak on September 5, 2013 at 9:29pm

बहुत सुन्दर रचना हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 8:34pm

बहुत सुन्दर! उच्च भाव से ओत प्रोत आपकी इस रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 5, 2013 at 8:33pm

अति सुंदर छंद प्रस्तुति पर बधाई आदरणीय डा. आशुतोष जी

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 5, 2013 at 8:24pm

आ0आशुतोष भाई जी,   सादर प्रणाम!    वाह!  बहुत सुन्दर प्रस्तुति।   आपको बहुत बहुत शुभकामनाओं  सहित हार्दिक बधाई।   सादर,  

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