For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

श्रांत मन का एक कोना शांत मधुवन छाँव माँगे...

श्रांत मन का एक कोना शांत मधुवन-छाँव मांगे।

सरल मन की देहरी पर
हुये पाहुन सजल सपने,
प्रीति सुंदर रूप धरती,
दोस्त-दुश्मन सभी अपने,
भ्रमित है मन, झूठ-जग में सहज पथ के गाँव माँगे।

कई मौसम, रंग देखे
घटा, सावन, धूप, छाया,
कड़ी दुपहर, कृष्ण-रातें,
दुख-घनेरे, भोग, माया।
क्लांत है जीवन-पथिक यह, राह तरुवर-छाँव मांगे।

भोर का यह आस-पंछी
सांझ होते खो न जाये,
किलकता जीवन कहीं फिर
रैन-शैया सो न जाये।
घेर लेती जब निराशा हृदय व्याकुल ठाँव माँगे।

श्रांत मन का एक कोना शांत मधुबन-छाँव मांगे।

(मौलिक व अप्रकाशित) 

Views: 914

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on September 5, 2013 at 9:13pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति .. बधाई स्वीकारें

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 5, 2013 at 8:16pm

कई मौसम, रंग देखे
घटा, सावन, धूप, छाया,
कड़ी दुपहर, कृष्ण-रातें,
दुख-घनेरे, भोग, माया।
क्लांत है जीवन-पथिक यह, राह तरुवर-छाँव मांगे।.......अनुपम सुंदर भाव ली हुयी पंक्तियाँ

वाह! बेहद सुंदर रचना , बहुत बहुत बधाई आदरणीया मानोशी जी

Comment by ram shiromani pathak on September 5, 2013 at 8:06pm

भोर का यह आस-पंछी 
सांझ होते खो न जाये,
किलकता जीवन कहीं फिर
रैन-शैया सो न जाये। 
घेर लेती जब निराशा हृदय व्याकुल ठाँव माँगे।

श्रांत मन का एक कोना शांत मधुबन-छाँव मांगे।/////////अनुपम पंक्तियाँ  

बहुत ही सुंदर रचना आदरणीया मानोशी जी हार्दिक बधाई आपको //सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 5, 2013 at 8:05pm

आ0 मानोशी जी,   सादर प्रणाम!    वाह!  अप्रतिम गीत....बहुत खूब।   इन सुन्दर भावों में दिेए गए स्वरूप को सादर नमन! आपकी रचना पर टिप्पणी  करने पर मुझे गर्व है। इस प्रस्तुति हेतु आपको बहुत बहुत शुभकामनाओं  सहित हार्दिक बधाई।   सादर, 

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 7:05pm

आदरणीया मानोशी जी,

‘उन्मेष’ के गीतों को पढ़कर जो अनुभूति हुई थी फिर ताजा हो गयी। आपके गीत वास्तव में इतनी मधुरता और सहजता से अंतस में उतरते हैं कि बस उसकी लय में पाठक रमता चला जाता है।

इस सुंदर गीत के लिए आपको हार्दिक बधाई।

Comment by राजेश 'मृदु' on September 5, 2013 at 6:24pm

वाह-वाह आदरेया, मन प्रसन्‍न हो गया इस सुंदर रचना को पढ़कर । बहुत बधाई, सादर

Comment by Manoshi Chatterjee on September 5, 2013 at 4:58pm

धन्यवाद श्याम जी, अन्नपूर्णा जी, रविकर जी, गिरिराज जी। आप सब को यह रचना अच्छी लगी, यह मेरे लिये पुरस्कार समान है। 

Comment by Shyam Narain Verma on September 5, 2013 at 4:35pm

 इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ....

Comment by annapurna bajpai on September 5, 2013 at 12:47pm

अनुपम ! अनुपम ! क्या लिखूँ और शब्द ही नहीं है आ० मनोशी जी । 

Comment by रविकर on September 5, 2013 at 11:41am

श्रेष्ठ रचना-
सादर आभार आदरेया
कृपया दूसरे छंद में इन्हें आजमायें-

अनुभाव माँगे =सामर्थ्य माँगे
पाँव माँगे =
दाँव माँगे-

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service