For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

श्रांत मन का एक कोना शांत मधुवन छाँव माँगे...

श्रांत मन का एक कोना शांत मधुवन-छाँव मांगे।

सरल मन की देहरी पर
हुये पाहुन सजल सपने,
प्रीति सुंदर रूप धरती,
दोस्त-दुश्मन सभी अपने,
भ्रमित है मन, झूठ-जग में सहज पथ के गाँव माँगे।

कई मौसम, रंग देखे
घटा, सावन, धूप, छाया,
कड़ी दुपहर, कृष्ण-रातें,
दुख-घनेरे, भोग, माया।
क्लांत है जीवन-पथिक यह, राह तरुवर-छाँव मांगे।

भोर का यह आस-पंछी
सांझ होते खो न जाये,
किलकता जीवन कहीं फिर
रैन-शैया सो न जाये।
घेर लेती जब निराशा हृदय व्याकुल ठाँव माँगे।

श्रांत मन का एक कोना शांत मधुबन-छाँव मांगे।

(मौलिक व अप्रकाशित) 

Views: 896

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on September 5, 2013 at 9:13pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति .. बधाई स्वीकारें

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 5, 2013 at 8:16pm

कई मौसम, रंग देखे
घटा, सावन, धूप, छाया,
कड़ी दुपहर, कृष्ण-रातें,
दुख-घनेरे, भोग, माया।
क्लांत है जीवन-पथिक यह, राह तरुवर-छाँव मांगे।.......अनुपम सुंदर भाव ली हुयी पंक्तियाँ

वाह! बेहद सुंदर रचना , बहुत बहुत बधाई आदरणीया मानोशी जी

Comment by ram shiromani pathak on September 5, 2013 at 8:06pm

भोर का यह आस-पंछी 
सांझ होते खो न जाये,
किलकता जीवन कहीं फिर
रैन-शैया सो न जाये। 
घेर लेती जब निराशा हृदय व्याकुल ठाँव माँगे।

श्रांत मन का एक कोना शांत मधुबन-छाँव मांगे।/////////अनुपम पंक्तियाँ  

बहुत ही सुंदर रचना आदरणीया मानोशी जी हार्दिक बधाई आपको //सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 5, 2013 at 8:05pm

आ0 मानोशी जी,   सादर प्रणाम!    वाह!  अप्रतिम गीत....बहुत खूब।   इन सुन्दर भावों में दिेए गए स्वरूप को सादर नमन! आपकी रचना पर टिप्पणी  करने पर मुझे गर्व है। इस प्रस्तुति हेतु आपको बहुत बहुत शुभकामनाओं  सहित हार्दिक बधाई।   सादर, 

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 7:05pm

आदरणीया मानोशी जी,

‘उन्मेष’ के गीतों को पढ़कर जो अनुभूति हुई थी फिर ताजा हो गयी। आपके गीत वास्तव में इतनी मधुरता और सहजता से अंतस में उतरते हैं कि बस उसकी लय में पाठक रमता चला जाता है।

इस सुंदर गीत के लिए आपको हार्दिक बधाई।

Comment by राजेश 'मृदु' on September 5, 2013 at 6:24pm

वाह-वाह आदरेया, मन प्रसन्‍न हो गया इस सुंदर रचना को पढ़कर । बहुत बधाई, सादर

Comment by Manoshi Chatterjee on September 5, 2013 at 4:58pm

धन्यवाद श्याम जी, अन्नपूर्णा जी, रविकर जी, गिरिराज जी। आप सब को यह रचना अच्छी लगी, यह मेरे लिये पुरस्कार समान है। 

Comment by Shyam Narain Verma on September 5, 2013 at 4:35pm

 इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ....

Comment by annapurna bajpai on September 5, 2013 at 12:47pm

अनुपम ! अनुपम ! क्या लिखूँ और शब्द ही नहीं है आ० मनोशी जी । 

Comment by रविकर on September 5, 2013 at 11:41am

श्रेष्ठ रचना-
सादर आभार आदरेया
कृपया दूसरे छंद में इन्हें आजमायें-

अनुभाव माँगे =सामर्थ्य माँगे
पाँव माँगे =
दाँव माँगे-

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
22 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service