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रात भर सोया नहीं

बस सोचता रहा

कब काली रात जायेगी

रवि अपनी किरणें फैलाएगा


बहुत लम्बी रात थी

जो नहीं था उसे खोजता रहा

अंतहीन धुंध के खौफ से

डरता कांपता

बार-बार खुद से यही पूछता

क्या सफल हो पाऊंगा?

सुबह हुई

पर कोई नयापन नहीं

अचानक

चिर स्थिर खड़े पेड़ को देखा

एक भी पत्ते नहीं थे

शायद !मुझसे कह रहा था

धैर्य रखो बसंत आने तक।
*******************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 796

Comment

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Comment by ram shiromani pathak on September 3, 2013 at 8:37pm

बहुत  बहुत  आभार  आदरणीया मीना जी //सादर 

Comment by रविकर on September 3, 2013 at 7:20pm

बहुत बढ़िया प्रिय "दीपक"
शुभकामनायें-

Comment by Meena Pathak on September 3, 2013 at 6:45pm

बहुत सुन्दर रचना .. बधाई आप को राम शिरोमणि जी

Comment by ram shiromani pathak on September 3, 2013 at 6:36pm

आदरणीया अन्नपूर्णा  जी बहुत बहुत आभार //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 3, 2013 at 6:36pm

आदरणीय गिरिराज जी बहुत बहुत आभार //सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 3, 2013 at 6:25pm

राम शिरोमणी भाई , लाजवाब रचना !! आशावादिता के ओर इंगित करती !! बधाई !!

Comment by annapurna bajpai on September 3, 2013 at 6:23pm

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति , बढ़िया संयोजन । आपको बधाई आ० राम शिरोमणि जी । 

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