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हे धर्मराज!.............डॉ० प्राची

हे धर्मराज! स्वीकार मुझे, प्रति क्षण तेरा संप्रेष रहे

यह जीवन यज्ञ चले अविरल, निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

 

लोभ-मोह के छद्माकर्षण, प्रज्ञा से नित कर विश्लेषण,

इप्सा तर्पण हो प्रतिपूरित, मन में तृष्णा निःशेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल, निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

 

कर्तव्यों का प्रतिपालन कर,निष्काम कर्म प्रतिपादन कर,

फल से हो सर्वस मुक्त मनस,बस नेह हृदय मधु-शेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

निवर्ण–सुवर्ण, अभिजात-मलिन, परिजन-परजन, शुभदिन दुर्दिन,

निःस्पर्श रहे हर आडम्बर, मन अंतर ऊर्जित त्वेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

 

हे धर्म-धरण! हे प्राण-हरण! सत् तत्व ज्ञान, नत शीश शरण,

श्वाँस-प्रश्वाँस तुम्हे अर्पित, निशप्रात दिवस दिनशेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by Dr.Prachi Singh on September 2, 2013 at 9:51am

गीत पर आपकी शुभ कामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद आ० केवल प्रसाद जी 


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Comment by Dr.Prachi Singh on September 2, 2013 at 9:50am

रचना के भावपक्ष पर आपकी सराहना के लिए आभारी हूँ आ० सत्यनारायण सिंह जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 2, 2013 at 9:48am

गीत के अर्थ और उद्देश्य पर आपकी सराहना के लिए धन्यवाद आ० लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 2, 2013 at 9:47am

रचना की उत्साहवर्धक सराहना के लिए हार्दिक आभार अरुण शर्मा अनंत जी 

Comment by वीनस केसरी on September 2, 2013 at 3:53am

आदरणीया,
 
ऐसी समृद्ध रचना के लिए किन शब्दों में अपने भाव व्यक्त  किया जाए ..
मैं खुद को असहाय पा रहा हूँ ....
अद्भुत
रचना ने सच में लाजवाब कर दिया है

सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 2, 2013 at 12:15am

अति सुंदर, अनुपम भाव से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई, आदरणीया डा. प्राची जी

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 1, 2013 at 9:18pm

आ0 प्राची मैम जी,  बहुत ही सुन्दर विनय, आग्रह एवं सादर निवेदन से परिपूर्ण अतिसुन्दर गीत।  हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर, 

Comment by Satyanarayan Singh on September 1, 2013 at 8:22pm

आदरणीया डॉ प्राची जी निर्मल पावन तथा   समर्पण भाव से परिपूर्ण आपकी यह रचना  मानव उत्थान के लिए निश्चित ही प्रेरक एवं सहायक सिद्ध होगी अतएव हार्दिक बधाई.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2013 at 7:31pm

हे धर्मराज! स्वीकार मुझे, प्रति क्षण तेरा संप्रेष रहे - बहुत सुन्दर और सौद्देश सार्थक गीत रचना अंतर्मन को छू गयी |

बहुत बहुत बधाई डॉ प्राची जी, सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 1, 2013 at 5:21pm

अहा!!! अप्रितम प्रस्तुति आदरणीया प्राची दीदी पढ़कर आत्मा तृप्त हो उठी भावों के गहरे सागर में गोते लगाकर उभरने को जी नहीं चाह रहा है. ह्रदयतल से कोटिशः बधाई स्वीकारें.

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