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ग़ज़ल - इतनी आसाँ ज़िंदगी होगी नहीं !

(मात्रिक विन्यास -- २१२२ २१२२ २१२ )


इतनी आसाँ ज़िंदगी होगी नहीं
मुश्किलों से दोस्ती होगी नहीं |

दर्द से कागज़ पे करना रौशनी
हर किसी से शाइरी होगी नहीं |

रुक न पाया सिलसिला जो बाँध का
कल के दिन भागीरथी होगी नहीं |

इस तरह कुचला गया जो हर गुलाब
फिर किसी घर में कली होगी नहीं |

मुद्दतों के बाद याद आया कोई
मेरे घर अब तीरगी होगी नहीं |


- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 26, 2013 at 8:15pm

आ0 आशीष भाई जी, वाह! बेहतरीन गजल। /मुद्दतों के बाद याद आया कोई, मेरे घर अब तीरगी होगी नहीं!/
हृदयतल से बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 26, 2013 at 8:00pm

शुक्रिया वंदना जी !!!

तहेदिल से शुक्रिया भाई अरुण शर्मा जी !!!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 26, 2013 at 7:59pm

बहुत-बहुत शुक्रिया Dr Lalit Kumar Singh जी  !!!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 26, 2013 at 7:58pm

बहुत-बहुत शुक्रिया गिरिराज भंडारी जी  !!!

Comment by shubhra sharma on August 26, 2013 at 7:48pm

आदरणीय सलिल जी ,
रुक न पाया सिलसिला जो बाँध का
कल के दिन भागीरथी होगी नहीं |.................साहित्य में पर्यावरण का सन्देश ,अति दुर्लभ

इस तरह कुचला गया जो हर गुलाब
फिर किसी घर में कली होगी नहीं |................आजकल की दुष्कर्म की घटनाओं पर प्रहार
लाजबाब प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बधाई

Comment by विजय मिश्र on August 26, 2013 at 5:19pm
चंद लफ्जों में आजकी बेतरतीबी पर जिंदाबयानी के लिए दिली शुक्रिया आशीषजी . खूबसूरत .
Comment by Sonam Saini on August 26, 2013 at 2:57pm

इस तरह कुचला गया जो हर गुलाब
फिर किसी घर में कली होगी नहीं |

आज के हालात पर एकदम सटीक बैठते इस शे र हेतु बधाई स्वीकार करे आदरणीय आशीष जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 26, 2013 at 1:47pm

वाह वाह वाह मित्रवर अप्रितम आनंद आ क्या क्या खूब अशआर हुए हैं भाई. दिल से ढेरों दाद कुबूल फरमाएं.

इस तरह कुचला गया जो हर गुलाब
फिर किसी घर में कली होगी नहीं ... वाह इस शेर हेतु विशेष तौर से बधाई स्वीकारें.

Comment by vandana on August 26, 2013 at 7:23am

दर्द से कागज़ पे करना रौशनी 
हर किसी से शाइरी होगी नहीं |

बहुत बढ़िया गज़ल 

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on August 25, 2013 at 9:54pm

बेहतरीन ग़ज़ल के लिए साधुवाद और बधाई।
इस मिसरे जरा देख लेंगे -'फिर किसी घर में कली होगी नहीं |'
सादर

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