वह पुराना बरगद
कहते है वह गवाह
उन शूर वीरों का
जो मर मिटे देश पर
इसकी आन औ शान
बचाने की खातिर
जाने कितने यूं ही
लटका दिये गये उन
शाखों पर जो देती
थीं दुलार प्यार व
हरे पत्तों की ठंडी
छाँव, ताजी हवा तब
वह बरगद जवां था
मजबूती से खड़ा हो
देखता सोचता था
अधर्मी पापियों एक
दिन वो भी आयेगा
जब तू भी यूं ही
मिटाया जाएगा
मै यहाँ खड़ा हो
देखूँगा तेरा भी अंत।
वह दिन आया जब
आततायियों की
आई बारी ढूंढ-
ढूंढ कर जड़े उखाड़ीं
रानी लक्ष्मी बाई
नाना व तात्या ने
बिठूर की शान बढ़ाई
चल दिये सब वीर कर
न्योछावर अपनी
ज़िंदगानी, फलसफ़ा
दे प्यार का क्रम यूं
चलता रहे, देश प्रेम
दिलों मे पलता रहे, न
रहे भेद भाव कभी, न
हो बैर भाई का
भाई से कभी फिर.........
आज हम आजाद हुये
वो बरगद वही पर
खड़ा था मुसकुराता ।
अब वह बूढ़ा हो चला
हरी पत्तियों का
झुरमुट भी कम हुआ
शाखें भी झुकने लगीं
फिर भी देता रहा वह
अपने प्यार की छाँ
वर्षों का सफर तय
करता पहुंचा वह
अंतिम पड़ाव पर
प्राण बाकी थे व
कुछ आशा भी शायद
मेरे बच्चे मुझसे करते
स्नेह और सम्मान
देते मुझे, कैसे त्यागूँ
अपने प्राण ................
एक दिन एक ठिठुरते
कंपकपाते हाथों ने
काट दी जीवन डोर
मै बूढ़ा क्या करता
अलविदा कह चल दिया
पुरानी यादें ले कर
मुस्कुराता बरगद
पड़ा था जमीन पर
जल कर भी दे गया
तपिश और थोड़ी सी
राख ..............।
अन्नपूर्णा बाजपेई
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आ ० सौरभ जी आपका हार्दिक आभार ।
इस संदर्भ में एक तथ्य साझा करना है.. डॉ.प्राची, कि सभी अतुकान्त रचनाएँ छंदमुक्त नहीं होती लेकिन सभी छंदमुक्त रचनाएँ अतुकान्त होती हैं.
आदरणीया अन्नपूर्णा जी, आपके प्रयास पर बधाई. प्रयासरत रहें.
सादर
बहुत ही सुन्दर रचना//
हार्दिक बधाई आदरणीया अन्नपूर्ना जी
आदरणीयाँ अन्नपूर्णा जी
अभिव्यक्ति का भाव पक्ष प्रबल है, पर क्या यह गद्य को ही तोड़कर छोटे छोटे वाक्यांशों में लिखा गया सा प्रतीत नहीं होता?
अतुकांत में अंतरगेय प्रवाह होना रचना को रोचक कर देता है ..कुछ ऐसे ही तत्वों को शामिल कर यह अभिव्यक्ति पद्य बन सकेगी.
सादर शुभेच्छाएँ
आदरणीया शुभ्रा जी आपका हार्दिक आभार ।
adarniya annpurna ji sundar rachana ke liye badhayee
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online