यदि होती नेता मै
सिंहासन पर बैठती
अगल बगल प्यादे
लंबी मोटर कार होती
तिजोरी भर धन होता
यहाँ कुछ वहाँ होता
षटरस व्यंजन खाती
गिनती एक न करती
देना तो दूर की बात
सब छीन ले आती
भूखे कितने भी भूखे
दो रोटी की थाली
बनवाती संग मे
चावल , कटोरी दाल
बोनस कह कद्दू देती
उन्नति का ठेंगा
पड़े रहते सब नेता
जो बिचारे फिरते है
वोट मांगते रहते है
अंत मे मौन रहे साध
आँख मूँद रहे अगाध
प्यादे बोलते हैं
प्यादे ही करते है
निपट निखट्टू सुनते
मंत्री जो संतरी कहते
चुपचाप की राजनीति
समझ न आती रीति
ऐसा ही करती
जो नेता होती ।.......................... अन्नपूर्णा बाजपेई
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र कुमार जी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया अन्न्पूर्णा जी ..व्यंग्य से युक्त सुन्दर रचना ...आज के हालत बद से बदतर होते जा रहे लगता है नेता हमारे समाज से मतलब ही नहीं रखते ....
आभार
भ्रमर ५
आदरणीय श्याम नारायण जी , अमन कुमार जी आपका हार्दिक आभार ।
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको
वर्तमान राजनीति की सच्चाई है आपकी रचना मे
अंत मे मौन रहे साध
आँख मूँद रहे अगाध
प्यादे बोलते हैं
प्यादे ही करते है
निपट निखट्टू सुनते|
अच्छी रचना है आभार
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