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लघु कथा : रमजान (गणेश जी बागी)

क किलो मटन आज वास्तव में एक किलो का ही लग रहा था । मैंने तराजू और बाट पर नज़र दौड़ाई । मालूम हुआ दोनों बिल्कुल नये हैं । अभी पिछ्ले महीने ही मटन लेने आया था तो पुराना तराजू और घिसे हुए बाट थे । बाट के नीचे से लगा हुआ तब रांगा भी गायब था । एक किलो मटन मानो आठ सौ ग्राम का ही लगता था | 
दुकान पर मौजूद छोटू से मैने धीरे से पूछ ही लिया, "क्या बात है जी, नया तराजू, नये बाट?.." 
छोटू दुकान मालिक की नज़र बचा कर फुसफुसाया, "सर, रमजान का महीना है ना, मालिक का रोज़ा चल रहा है,  ईद बाद फिर वही ........"
  • समाप्त 
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघु कथा : दर्द

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 18, 2013 at 9:48am

बहुमूल्य टिप्पणी हेतु आभार आदरणीय नारंग साहब । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 18, 2013 at 9:44am

बहुत बहुत आभार आदरणीया कुंती मुखर्जी जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 18, 2013 at 9:43am

सराहना हेतु अतिशय आभार आदरणीया डॉ नूतन गैरोला जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 17, 2013 at 2:09pm

आदरणीया महिमा जी, लघुकथा पसंद करने हेतु बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 17, 2013 at 2:06pm

आभार आदरणीया कविता वर्मा जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 17, 2013 at 2:06pm

आपसे सहमत हूँ आदरणीय जागीरदार साहब, उत्साहवर्धन हेतु आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 17, 2013 at 2:04pm

सराहना हेतु आभार आदरणीया वसुंधरा पाण्डेय जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 17, 2013 at 2:04pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई जी, आपका अनुमोदन इस लघुकथा पर मिला, लेखन कर्म सार्थक हुआ, उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार । 

Comment by R. K. PANDEY "RAJ" on August 12, 2013 at 6:50pm

arey waah, bahute gajab kaa laghu katha hai ganesh bhayi........bahut hee kam shabdon mein aapne kahaani ko majbut kirdaar aur majedaar waakyaat ke saath hamsabhi ke dil tak utaar diya.........bahut khoob.

Comment by vijay nikore on August 12, 2013 at 7:31am

आज की सच्चाई, इतने थोड़े से शब्दों में दिखाई... बागी जी, आपको शत-शत बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

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