For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अन्वेषण - (रवि प्रकाश)

मंज़िल-मंज़िल ढूँढ़ा जिसको,रस्ते-रस्ते खोजा है;
मस्जिद-मस्जिद रोज़ पुकारा,मंदिर-मंदिर पूजा है।
कभी तलाशा महफ़िल-महफ़िल,परबत-परबत छाना है;
गलियों-गलियों खूब टटोला,नगरी-नगरी माना है।
गर्म सुनहले आतप में भी,खिलती नर्म बहारों में,
बहुतेरे हम भटक चुके हैं,सिकता भरे कछारों में।
सागर-सागर,नदिया-नदिया,कितने गोते खाए हैं;
अंतरिक्ष की सीमाओं का,अतिक्रमण कर आए हैं।
कुछ मझधारों ने भरमाया,कुछ लहरों ने धोया भी;
क्या-क्या पा जाने की धुन में,जाने क्या कुछ खोया भी।
मदिरा की मस्ती में जिसको,अधरों से टकराया था;
डगमग-डगमग उठते पग में,साथ खड़े ही पाया था।
लेकिन बेसुध घड़ियों में भी,प्राणों का विस्तार नहीं;
हर बहलावा एक छलावा,पीड़ा से निस्तार नहीं।
इसका आँचल,उसका दामन,कुछ भी काम नहीं आया;
रूपचन्द्र भी ढलते देखे,मलिन पड़ी कंचन-काया।
आँख मूँद कर करें भरोसा,किसको अपना मन दे दें;
किसको भेंट करें सुख-सपने,मदमाता यौवन दे दें।
प्रश्न यहाँ पर लाखों सच्चे,उत्तर लेकिन झूठे हैं;
सब कुछ पी जाने की इच्छा,प्याले लेकिन टूटे हैं।
संतापों के राजभवन में,पीड़ा ही बस रानी है;
दुख ही सबकी रामकथा है,खुशियाँ आनी-जानी हैं।
भँवर,लहर,माझी,पतवारें,मानो तो अपना मन है;
हँसी,उदासी,सावन,फागुन,अपने ही तो आँगन है।
अपने अंतरतम में आख़िर,जीवन का उपहार मिला;
जिसके पीछे बाहर भटके,धड़कन के ही द्वार मिला।

मौलिक व अप्रकाशित।

Views: 619

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on August 12, 2013 at 6:41am
मैं अनुगृहीत हूँ ।धन्यवाद।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2013 at 10:02pm

इस अन्वेषण का हेतु और प्राप्य अत्यंत तोषकारी है.  आपकी प्रगल्भता इस बात की साक्षी है, कि सटीक और सहज विन्यास क्या कमाल कर सकता है. आपकी प्रस्तुत रचना इसका सुन्दर उदाहरण है, भाई रविप्रकाश जी .

आपकी रचनाओं का इंतज़ार रहेगा, भाई.

शुभेच्छाएँ

Comment by Ravi Prakash on August 7, 2013 at 10:22pm
धन्यवाद।
Comment by Ravi Prakash on August 7, 2013 at 10:21pm
धन्यवाद।
Comment by Ravi Prakash on August 7, 2013 at 10:20pm
धन्यवाद।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 6, 2013 at 11:07pm

वाह !!!!! आदरणीय रवि जी, कलकल - छलछल प्रवाहमयी रचना ने मन को मोह लिया है. बहुत-बहुत बधाइयाँ....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 6, 2013 at 9:29pm

रवि जी बहुत सुन्दर 

कविता का प्रवाह प्रशंसनीय है| कविता शीर्षक से पूरी तरह से जुडी हुई है और अपने कथ्य को जनमानस तक प्रेषण करने में सक्षम है| हार्दिक बधाई|

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 6, 2013 at 5:32pm

सुंदर व्  प्रभाव शाली रचना पर,हार्दिक बधाई ,आदरणीय रवि जी 

Comment by Shyam Narain Verma on August 6, 2013 at 5:23pm
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... 
Comment by Aditya Kumar on August 6, 2013 at 2:57pm

ह्रदय स्पर्शी ! मार्मिक वर्णन ! बेहतरीन शब्द संयोजन
इतने सुन्दर लेखन के लिए आपको हार्दिक बधाई एवम सुभकामनाये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service