For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चांदनी फिर पिघलने लगी है

चांदनी फिर पिघलने लगी है
आँसुओं से धुली वो इबारत

गीत बनकर मचलने लगी है।

रोते-रोते हुए पस्त शिशु से,

भावना के विहग सो गये थे
सांझ की डाल सहमी हुई थी,

भोर के पुष्प चुप हो गये थे
फिर अचानक हुई कोई हलचल,

जैसे लहरा गया कोई आंचल
उनके दिल से उठी एक बदली

मेरी छत पे टहलने लगी है।

इक गजल पर तरह दी किसी ने,

भूला मुखड़ा पुनः गुनगुनाया
प्यार से साज की धूल झाड़ी,

मुद्दतों बाद फिर से उठाया
तार छेड़ें अभी या न छेड़ें,

सुर सजायें या कुछ और ठहरें
मन की पंचायतों में इसीपे

कशमकश रोज़ चलने लगी है।

जिस्म ठंडा पड़ा था सुमन का,

कुछ हरारत सी आने लगी है
कब की मुरझा चुकी खुश्बुओं में,

जिन्दगी कुलबुलाने लगी है
गोद में तितलियों को उठाये,

झांक खिड़की से देखा हवा ने
खोल कर बेबसी के किवाड़े

फिर खुले में निकलने लगी है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 680

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sulabh Agnihotri on August 5, 2013 at 3:35pm

बहुत-बहुत धन्यवाद ! अरुण शर्मा ‘अनन्त’ जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 5, 2013 at 3:35pm

बहुत-बहुत धन्यवाद ! जवाहर लाल सिंह जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 5, 2013 at 3:34pm

बहुत-बहुत धन्यवाद ! भाई शरदिन्दु मुखर्जी जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 5, 2013 at 3:33pm

धन्यवाद ! जितेन्द्र ‘गीत’ जी !

Comment by Meena Pathak on August 5, 2013 at 2:23pm

बेहद खूबसूरत गीत, बधाई स्वीकारें 

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 5, 2013 at 12:50pm

वाह बेहद सुन्दर गीत रचा है भाई पढ़कर मजा आ गया हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by Sulabh Agnihotri on August 5, 2013 at 10:28am

बहुत-बहुत धन्यवाद गीतिका वेदिका जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 5, 2013 at 10:27am

हार्दिक आभार बृजेश नीरज जी !

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 5, 2013 at 5:12am

बेहद खूबसूरत रचना!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on August 5, 2013 at 1:15am

//कब की मुरझा चुकी खुश्बुओं में,

जिन्दगी कुलबुलाने लगी है
गोद में तितलियों को उठाये,

झांक खिड़की से देखा हवा ने
खोल कर बेबसी के किवाड़े

फिर खुले में निकलने लगी है।//...अप्रतिम पंक्तियाँ....आनंद विभोर कर देने वाली, सौंदर्य से सराबोर रचना. इस आनंद दान के लिये हार्दिक आभार भाई सुलभ जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
10 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
11 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service