सोचता हूँ
क्या होगा
इस नीले आकाश के पार
कुछ होगा भी
या होगा शून्य
शून्य
मन सा खाली
जीवन सा खोखला
आँखों सा सूना
या
रात सा स्याह
कैसा होगा सबकुछ
होगी गौरैया वहां?
देह पर रेंगेंगी
चीटियाँ?
या होगा सब
इस पेड़ की तरह
निर्जन और उदास;
सागर की बूँद जितना
अकल्पनीय
बिना जाए
जाना कैसे जाए
और जाने को चाहिए
पंख
पर पंख मेरे पास तो नहीं
चलो पंछी से पूछ आएं
गरुड़ से।
ढूँढते हैं गरुड़ को।
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया कुन्ती जी आपका हार्दिक आभार!
लाजवाब रचना!!
बधाई स्वीकारें आदरणीया बृजेश जी!
बृजेश जी , आप की रचना पढ़ी और बार बार पढ़ी.........एक ही बात मन से निकली...'जहाँ न पहूँचे रवि, वहाँ पहूँचे कवि,
सादर
कुंती
आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय श्याम जी आपका हार्दिक आभार!
hardik badhai is sundar rachna ke liye .
adarniy brejesh ji apki rachnayen to nishabd kar deti hai . kya bolun samjh nahi pati .
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
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