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अलादीन का चिराग हूँ मैं

अलादीन का चिराग हूँ मैं

एक हसीन ख्वाब हूँ मैं

 

मचलती सुबह हूँ मैं

खिलखिलाती शाम हूँ मैं

 

हँसी का अंदाज हूँ मैं

प्रीत हूँ प्यार हूँ मैं

 

पहचान मेरी मुझसे है

दो कुलों की शान हूँ  मैं

 

दायरों मे बंधी हूँ मैं

शर्म से सजी हूँ मैं

 

छाया हूँ बाबुल के आंगन की

पिया की परछाई हूँ मैं

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Ashok Kumar Raktale on July 15, 2013 at 9:42pm

आदरणीया प्रज्ञा श्रीवास्तव जी सुन्दर रचना. किसी भी रचना को एक निश्चित शिल्प पर साधने से उसका निखार कई गुना बढ़ता है. इसी निमित्त ओ बी ओ पर समूहों में लगभग हर तरह के शिल्प की सम्पूर्ण जानकारी दी गयी है. उसका लाभ लें.सादर.

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