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लघु कथा : दर्द (गणेश जी बागी)

ज फिर किसी ने पारस को चाकू मार दिया था, उसकी किस्मत अच्छी थी कि घाव बेहद मामूली था.  डाक्टर बाबू देखते ही पारस को पहचान गये, क्योंकि कोई आठ दस महीने पहले की ही तो बात है जब पारस के घर मे डकैती हुई थी और बदमाशों ने पारस के शरीर पर चाकू से अनगिन वार किये थे, तब इलाज के लिए उसे इसी डाक्टर के पास लाया गया था, गंभीर रूप से ज़ख़्मी होने के बावजूद भी इस बहादुर नौजवान के मुँह से उफ़ तक नहीं निकली थी, लेकिन इस बार अत्यधिक दर्द से रोता बिलखता देख डाक्टर साहब को बहुत आश्चर्य हो रहा था, अत; उन्होंने पूछ ही लिया :

"अरे पारस इतना तो तुम पिछली बार भी नही रोये चिल्लाए थे जितना अब रो रहे हो, जबकि इस बार तो घाव भी मामूली सा है,

"डाक्टर साहब ! पिछली बार कुछ अजनबी बदमाशों ने मुझ पर वार किया था जिन्हे मैं जानता तक नही, पर इसबार वार करने वाला मेरा ............"

"मौलिक व अप्रकाशित"

पिछला पोस्ट => मर्द

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 23, 2013 at 12:09pm

बहुत बहुत आभार शुभ्रांशु भाई जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 23, 2013 at 12:08pm

//ऐसे भी 'दर्द हमेशा अपने ही देते है वर्ना गैरों को क्या पता आपको तकलीफ किस बात से होती है '//

आह ! गैरों को क्या पता कि आपको तकलीफ कैसे होती है, .....क्या बात कही है आदरणीया, सहमत हूँ, लघुकथा अपने मूल स्वरुप में आप तक पहुँच सकी, लेखन कर्म सार्थक हुआ, सराहना हेतु अतिशय आभार आदरणीया शुभ्रा शर्मा जी .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 23, 2013 at 12:05pm

लघुकथा पसंद करने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ भईया जी .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 23, 2013 at 11:22am

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया महिमा श्री जी .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 23, 2013 at 11:20am

आदरणीया कुंती मुखर्जी जी, आपने लघुकथा को मान देकर निश्चित ही उत्साहवर्धन किया है, मैं आभारी हूँ आदरणीया .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 23, 2013 at 11:11am

आदरणीय केवल प्रसाद जी, लघुकथा आप तक पहुँच सकी, इसके लिए बहुत बहुत आभार, स्नेह बना रहे.  

Comment by ajay yadav on July 21, 2013 at 1:02am

सादर प्रणाम ,

..............................................

अपनों के घाव से ...व्यक्ति टूट जाता हैं |

बहुत सशक्त लेखन |

Comment by कल्पना रामानी on July 19, 2013 at 11:05pm

बहुत भावपूर्ण मार्मिक लघुकथा है, आदरणीय बागी जी, आपकी रचनाएँ मन पर गहरा असर करती हैं। एक और नया विषय मुझे मिल जाता है...मेरी बधाई स्वीकार कीजिये।

सादर

Comment by Abhinav Arun on July 19, 2013 at 9:37pm

सही कहा  श्री बागी जी , घाव जब अपने देते हैं  तो पीड़ा अधिक व्यथित करती है ।एक सशक्त लघुकथा हेतु हार्दिक साधुवाद !!

Comment by Shubhranshu Pandey on July 19, 2013 at 3:00pm

आ. गणेश जी, रचना के समाप्त होते होते पारस के घाव के दर्द महसुस होने लगते हैं...वाह...

सादर 

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