For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - "हक जताता है"

कभी सपने सज़ाता है कभी आंसू बहाता है
खुदा दिल चीज़ कैसी है जो पल में टूट जाता है

ये उठते को गिराता है व गिरते को उठाता है
अरे ये वक्त ही तो है सदा हमको सिखाता है

मेरी ज़र्रा नवाज़ी को न कमज़ोरी समझना तुम
अदाकारी परखने का हुनर हमको भी आता है

जो ज़ेरेख्वाब ही मदमस्त हो अपने लिए जीता
ये आदमजात है भगवान को भी भूल जाता है

मै रोऊँ या हंसूं मंज़ूर पर उसको ही लेकर के
भला क्यों आज भी हम पर वो इतना हक जताता है

अदा-ए-दिल्लगी उसकी “ऋषी” दिल जीत लेती है
मुझे ही सामने कर जब मेरी गज़लें सुनाता है 

अनुराग सिंह “ऋषी”

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 932

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on July 20, 2013 at 4:25pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद कुबूल करें!

आदरणीय अनुराग ऋषि जी! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 20, 2013 at 3:13pm

हार्दिक धन्यवाद कि आपने प्रदत्त सुझाव के अनुरूप ग़ज़ल के अशार के क्रम में सुधार क लिया.  लेकिन लगता है आपको मेरे अन्य कहे पर अभी पूर्ण भरोसा नहीं है.

शुभ-शुभ

Comment by Anurag Singh "rishi" on July 20, 2013 at 12:48am

परम आदरणीय सौरभ सर आपके मूल्यवान सुझावों हेतु आपका आभारी हूँ मेरे जैसे अल्पज्ञ को आप ऐसे ही रास्ता दिखाते रहेन यही कामना करता हूँ साथ ही आशा भी
सादर

Comment by Anurag Singh "rishi" on July 20, 2013 at 12:44am

सर्व प्रथम आभार आप दोनों का डॉ. प्राची जी एवं वंदना जी ह्रदय से शुक्रिया आपकी मूल्यवान प्रतिक्रिया हेतु


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 18, 2013 at 3:37pm

भाई अनुराग जी, आपकी ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यवाद.

आपकी इस प्रस्तुति से मन खुश हुआ लेकिन ग़ज़ल के मूल पहलुओं के प्रति आप तनिक सचेत हों तो मज़ा दूना हो जाये.

ये उठते को गिराता है व गिरते को उठाता है
अरे ये वक्त ही तो है सदा हमको सिखाता है.. .

इस शेर को मत्ले के ठीक बाद रखा होता आपने तो यह हुस्नेमतला कहलाता. लेकिन यहाँ यह तक़ाबु्ले रदीफ़ के ऐब का वाहक है. इस शेर को सही जगह कर दें.

मै रोऊँ या हंसूं मंज़ूर पर उसको ही लेकर के.. . इस मिसरे में लेकर के साथ के भर्ती का है.  ह गलत प्रयोग ग़ज़ल के लिहाज़ से त्याज्य है. 

मक्ते में भी तकाबुलेरदीफ़ का दोष बन रहा है. देख लीजियेगा. साथ ही, कर के प्रयोग थोड़ा कचकता हुआ तो है ही.

ये मेरे कुछ सुझाव हैं जो प्रथम दृष्ट्या प्रतीत हुए हैं.

शुभेच्छाएँ.

Comment by vandana on July 16, 2013 at 7:11am

bahut sundar gazal !!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 15, 2013 at 10:06am

बहुत सुन्दर गज़ल लिखी है आ० अनुराग सिंह जी 

बहुत कोमल एकसासों को सहेजा है इसमें 

बहुतबहुत बधाई 

Comment by Anurag Singh "rishi" on July 15, 2013 at 9:19am

आदरणीय मोहन जी और अरुन कुमार जी आप के हौसला अफजाई के  लिए बहुत बहुत शुक्रिया ऐसे ही स्नेह बनाए रखें
सादर

Comment by Anurag Singh "rishi" on July 15, 2013 at 9:12am

आदरणीय श्याम नारायण जी ह्रदय से आभारी हूँ आपका

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 15, 2013 at 8:58am

कभी सपने सज़ाता है कभी आंसू बहाता है
खुदा दिल चीज़ कैसी है जो पल में टूट जाता है

अनुराग सिंह “ऋषी” जी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई .......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
5 hours ago
दिनेश कुमार posted a blog post

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार ( गीत )

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार( सुधार और इस्लाह की गुज़ारिश के साथ, सुधिजनों के…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहा पंचक - राम नाम

तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।बिना राम  के  नाम  के,  कुन्दन-हीरा  काँच।१।*तपते दुख की  धूप …See More
5 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई, पदों की संख्या को लेकर आप द्वारा अगाह किया जाना उचित है। लिखना मैं भी चाह रहा था,…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए है।हार्दिक बधाई। भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ । "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, हार्दिक धन्यवाद  आभार आपका "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद  आभार आदरणीय अशोक भाईजी, "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service