ऐ प्रकृति तू धर शरीर
ले जन्म किसी माँ की कोख से !!
.
जब तुझे लगेगी चोट
बहेगा लहू तेरे शरीर से
या बीच राह में कोई
दाग लगेगा आबरू पे कोई
जब जागेगा ये मानव कही
रक्षा को तेरी तभी
ऐ प्रकृति तू धर शरीर !!
.
वैसे तो कुछ दिनों का होगा जोश
मानव का मानव के लिए
मगर इस बहाने ऐ प्रकृति
तेरा ख्याल तो आयेगा
वरना ये शातिन प्राणी
अपने स्वार्थ के लिए
तुझको ही ये लूटता जायेगा
ऐ प्रकृति तू धर शरीर
ले जन्म किसी माँ की कोख से ......!!
शातिन = दुराचारी
मौलिक एवं अप्रकाशित
सुमित नैथानी
Comment
साथ मे आपकी सुन्दर पंक्तिया ...उनके लिए धन्यवाद
लक्ष्मण जी प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया ....
प्रकृति देती है जन्म बनकर धरा
उसकी ही गोद में उपवन हरा-भरा
उसको न यूँ शातिर प्राणी से है कहना
प्राणी अपनी आदत से खुद ही मरा |
आपकी विचार शील/सोच के लिए बधाई
Ravikar ji @ sukriya
D P Mathur ji@ prtikriya ke liye shukriya
neeraj ji shukriya
नहीं चुनौती को करे, यह कुदरत स्वीकार |
मानव को खुब समझती, इससे नहिं उद्धार ||
आभार आदरणीय-सुन्दर सोच-
सुमित जी इंसान प्रकृति से छेड़छाड़ करता ही रहेगा ,
क्योंकि उसे दोहन की आदत हो गई है !
अच्छा व्यंग्य !
bahut hi sundar rachna
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