कविता :- हमें माफ करना स्वस्तिका
हमें माफ करना स्वस्तिका
हमने भुला दी है इंसान होने की संवेदना
अब हमें तुम्हारे बलिदान सी घटनाएं नहीं हिलाती
सत्ता और संसार सभी चलते रहते अपनी राह
कोई नहीं ग्रस्त होता तुम्हारी हत्या के अपराध बोध से
कौन जान सकता है तुम्हारी आत्मा की पीड़ा
कि तुम् नहीं देख सकी दूसरे जन्मदिन के गुब्बारे
दोस्तों संग नहीं काट-बाट सकी केक
और समय से पहले ही बुझ गयी तुम्हारे जीवन की मोमबत्ती
धरी की धरी रह गयी माता पिता की तैयारियां |
हमें माफ करना स्वास्तिका
कि गंगा तट की सीढियां गवाह बनी इस अमानवीय कृत्य की
तुम नहीं देख सकी गंगा आरती की भव्यता
और अब सियासतदां देख रहे हैं अवशेष
शैतानी सभ्यता के
कर रहे जुबानी जमा खर्च
तुमपर और तुम्हारे जीवन के अनजीये दिनों पर
अब तो तुम्हे भूल गए हैं खबरिया चैनेल भी
तुम जिनकी ब्रेकिंग न्यूज बन बढ़ा गयी थी टी.आर.पी.
अखबार के वे पन्ने भी पहुँच गए परचून कि दूकान
तुम जिनपर छाई थी |
हमें माफ करना स्वस्तिका
कि हम भूल गए हैं कि हम इंसान बन पैदा हुए
कहने को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना |
Comment
लता जी और , मदन जी आपके कमेन्ट इस रचना को सार्थक बनाते हैं मैं आभारी हूँ |
अब तो तुम्हे भूल गए हैं खबरिया चैनेल भी
तुम जिनकी ब्रेकिंग न्यूज बन बढ़ा गयी थी टी.आर.पी.
अखबार के वे पन्ने भी पहुँच गए परचून कि दूकान
तुम जिनपर छाई थी |
it is heart touching. a shame for those who kill innocent.
dhanyavaad anupama jee !!!
marmsparshi rachna!!!
dr sanjay sir thanks a lot !!! your appreciation will courage me to deliver best !!!
इंसानी ज़ेहन को कुरेदती मर्म स्पर्शी अभिव्यक्ति,
aashish jee dhanyavaad |laut aaye aap aap kee kamee khal rahee thee .
आभार भाई राकेश जी |साहित्य समय सापेक्ष हो तभी सार्थक है |
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