For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार की पराकाष्ठा

मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घर सजना 

आज सुबह से थिरक रहे हैं,चंचल चित,व्याकुल नयना

 

घनघोर घटा घर आंगन छाना,तुझमें  ही छुप जाऊंगी

व्यथित ढूंढ जब होंगे प्रिय, तुरत सामने आ जाऊंगी

लग जाऊंगी जब सीने से, झूम बरसना तुम अंगना

              मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घर सजना 

 

पी-कहाँ, पपीहे कहते थे तुम, कल तडके घर आ जाना

मेरे साथ ही तुझको भी है, गीत ख़ुशी के फिर गाना

द्वार मिलन पर पलक बिछाए ठुमक रहे मेरे कंगना  

                 मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घर सजना 

 

कली-कली से कह दो भौंरे,खिलना होगा ठीक समय

चारों और सुगंध रहे जब द्वार खड़े  हों सुमन तनय

प्रात समीर है तुझसे अनुनय,धीरे-धीरे तुम  चलना  

                   मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घर सजना 

                   आज सुबह से थिरके  मेरे चंचल चित, व्याकुल नयना

 

मौलिक और प्रकाशित 

Views: 918

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on July 5, 2013 at 6:01pm

चारों और सुगंध रहे, जब द्वार खड़े  हों सुमन तनय

कली.कली से कह दो भौंरे,खिलना होगा सही समय

 

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, भाई साहेब

पोंक्तियों को उलट दिया है शायद भाव स्पष्ट हो गया हो. 
आपकी नज़रें बड़ी पारखी और तीक्ष्ण हैं। मान गया 
सादर   
Comment by Sumit Naithani on July 5, 2013 at 2:43pm

महबूब के इंतज़ार में दिल की गलियों को सजना होगा ...सुंदर प्रस्तुति है 

Comment by vijay nikore on July 5, 2013 at 12:54pm

सुन्दर गीत के लिए बधाई, आदरणीय ललित जी।

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 5, 2013 at 12:45pm

इस मंच पर आपकी एक नयी रचना नयी शैली में आयी है, आदरणीय ललितजी.  बधाई हो.

वैसे रचना के विन्दु सनातन हैं और कथ्य में भी वहीवहीपन है किन्तु विषय में अंतर्निहित सनातन उत्फुल्लता रोचकता बनाये रखती है.आपकी रचनाप्रक्रिया पर मेरी हार्दिक बधाइयाँ.

कली-कली से कह दो भौंरे,खिलना होगा ठीक समय .. इस पंक्ति में थोड़ी अस्पष्टता है, भाव खींच क्रर निकालना पड़ रहा है. इसे संयोजित किया जा सकता है. 

आपकी इस नयी प्रस्तुति पर पुनः बधाइयाँ और शुभकामनाएँ

सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 5, 2013 at 11:36am

सुन्दर प्रणय गीत रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे डॉ ललित कुमार सिंह जी | सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 5, 2013 at 10:58am
""घनघोरघटा घर आंगन छाना,तुझमें ही छुप जाऊं गी

व्यथित ढूंढ जब होंगे प्रिय, तुरत सामने आ जाऊं गी

लग जाऊंगीजब सीने से, झूम बरसना तुम अंगना

मैंने ख्वाबों में देखा है, कल आयेंगे घरसजना""........आदरणीय..डा.ललित सिंह जी, बेहद सुंदर गीत, ़सच गुनगुनाने पर ऐसा ही प्रतीत होता है मानो सजना का बेसब्री से इंतजार हो...हार्दिक बधाई
Comment by DR. GANGADHAR DHOKE on July 5, 2013 at 9:48am

शब्द चयन भावभिव्यक्ति वंदनीय है. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 5, 2013 at 9:41am

बहुत सुन्दर गीत प्रस्तुत किया है आ० डॉ० ललित जी 

प्रेयसी की बहुत कोमल भावनाएं... स्वागत की आकुलता 

बहुत सुन्दर 

सादर बधाई

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 5, 2013 at 9:38am

आ0 ललित भाई जी,  ‘कली.कली से कह दो भौंरे,खिलना होगा ठीक समय, चारों और सुगंध रहे जब द्वार खड़े  हों सुमन तनय‘.... सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।   सादर,

Comment by रविकर on July 5, 2013 at 8:12am

सुन्दर चित्रण है आदरणीय-
शुभकामनायें-
कुछ शब्दों के हेर-फेर से गेयता और बढ़ जायेगी-
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
7 hours ago
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
12 hours ago
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
Wednesday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
Wednesday
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
Tuesday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service