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बिछड़ा था हमसफ़र मेरा

अप्रैल की गर्मियों में 
मिले  न अब तक, 
उसके कोई निशान 
न आयी उसकी कोई चिट्ठी -खबर !!
.
गर्मियों से बरसात तक 
मिले जो राह में पदचिह्न मुझे 
उन पदचिह्नों को देख कर 
जाने कितनी बार अश्क बहाये  
कितनो के आगे रोया  
कही देखा है हमसफ़र मेरा !! 
.
उम्र के साथ अब ढल रही है नज़रे 
और थक रहा है बदन मेरा 
मगर मेरी उम्मीद कहती है 
मिलेगा एक दिन हमसफ़र तेरा ...
.
मेरे मरने से पहले
उससे मिला देना खुदा 
या मुझ तक भेज देना सन्देश उसका
कि वो जहाँ है बहुत खुश है 
ताकि सुकून  से मर सकू मैं !!!!
.
सुमित नैथानी 
 
मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 647

Comment

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Comment by Sumit Naithani on July 5, 2013 at 2:36pm

सही कहा मुखेर्जी जी,,,प्रतिक्रिया के लिये शुक्रिया 

Comment by coontee mukerji on July 4, 2013 at 7:36pm

बहुत सुंदर

उम्र के साथ अब ढल रही है नज़रे 

और थक रहा है बदन मेरा 

मगर मेरी उम्मीद कहती है 

मिलेगा एक दिन हमसफ़र तेरा .........इसी उम्मीद पर तो दुनिया कायम है

Comment by Sumit Naithani on July 4, 2013 at 2:37pm

सौरभ जी @ शुक्रिया ...पथ प्रदर्शन के लिये 

Comment by Sumit Naithani on July 4, 2013 at 2:36pm

माथुर जी @ शुक्रिया 

Comment by Sumit Naithani on July 4, 2013 at 2:35pm

अरुण जी @ शुक्रिया 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2013 at 11:53am

रचनाकर्म के भाव सनातन हैं. प्रयासरत रहें तथा इस मंच की अन्यान्य रचनाओं को भी पढ़ते हें.

आपकी रचनाएँ आपसे उम्मीद जगाती हैं. 

चित्र पिक्चर आदि से चमत्कार पैदा करने की कोशिश पर पहले भी कह चुका हूँ. रचना समृद्ध ही तो पाठकों का ध्यान वे इन चित्रों के बग़ैर भी खींचेंगीं.

शुभेच्छाएँ

Comment by D P Mathur on July 4, 2013 at 8:10am

आदरणीय सुमित जी ,
बहुत सुन्दर रचना !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on July 3, 2013 at 8:54pm

सुंदर रचना. कोमल भावनायें. शुभकामनायें

Comment by Sumit Naithani on July 3, 2013 at 4:51pm

रविकर जी शुक्रिया ....

Comment by रविकर on July 3, 2013 at 4:40pm

बढ़िया है आदरणीय-
शुभकामनायें-

कृपया ध्यान दे...

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