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ले चल अपने देस पिया जी ..



ले चल अपने देस पिया जी , ये घर अब ना भाए..

जी चाहे,तेरी सुगंध ऐसे मुझ में बस जाए..

जो भी देखे मुझको ,मुझमें तेरी छाया पाए..


रोम रोम मेरा हर पल बस तेरी महिमा गाए..

मेरे होठों पे जब आएँ शब्द तेरे ही आएँ..


इस भौतिक जीवन में तो अब ना ये मनवा रम पाए..

दुनियादारी सोचने बैठूं, तुझमें सुध खो जाए..


ले चल अपने देस पिया जी ,ये घर अब ना भाए..

हर पल तेरा नाम जपु,तुम्हारी छवि ही ललचाए..


ले चल अपने देस पिया जी.



.

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Comment by Lata R.Ojha on December 8, 2010 at 5:35pm
Dhanyavaad Asha ji aur Bhasker ji :)
Comment by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 3:11pm
नारी का ये अदभुत भाव...अति सुंदर
Comment by asha pandey ojha on December 7, 2010 at 10:43am
पी को पुकारती कविता .. एक तरुनी के सुखद स्वप्न को अपने आंचल में समेटे हुए बहुत ही मनमोहक कविता है ये लता जी

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