For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन्त्रमुग्ध

 

जाने हमारे कितने अनुभवों को आँचल में लिए

ममतामय पर्वतीय हवाएँ गाँव से ले आती रहीं

रह-रह कर आज सुगन्धित समृति तुम्हारी...

तुम्हारी रंगीन सुबहों की स्वर्णिम रेखाएँ

बिछ गईं थी तड़के आज आँगन में मेरे

कि जैसे झुक गई थीं पलकें उषा की सम्मानार्थ,

विकसित हुए फूल हँसते-हँसते मन-प्राण में मेरे।

 

खुशी में तुम्हारी मैं फूला नहीं समाता, यह सच है,

सच यह भी, कि मन में मेरे रहती है सोच तुम्हारी गहरी,

हँसते हुए इन फूलों की हँसी से मापता हूँ सम्मोहित

मुझमें तुम्हारा अविरल विश्वास, सुकोमल उल्लास,

हवा के झोंकों से सुनता रहा हूँ सुबह से, संवेदित

भावों की धड़कन कि जैसे उल्लासोन्माद से अरुणित

खींच कर रख देती थी मेरे हाथ को तुम सीने पर अपने।

 

कुछ लगा कि जैसे यह पर्वतीय हवाएँ अकेली नहीं आईं,

फूलों की हँसी में छिपाए यह तुमको हैं साथ ले आईं,

और तुम... तुम रवि-रश्मि बनी, मेरे रोम-रोम में बसी,

हाथ में हाथ लिए, मेरे भविष्य की लकीरों को संवारती,

मेरे अंतरस्थ गठरी-सी पड़ी सारी मनोग्रंथियों को

खोल देती हो अति सहज,..फिर क्यूँ कण्ठ-रूँधे मित्र-भाव मेरे

ढूँढते हैं मौन में तुम्हारे आज कितने अनकहे शब्दों के अर्थ ?

                                  

                                      ---------

                                                                          -- विजय निकोर

                                                        १५ जून, २०१३

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 857

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 24, 2014 at 12:59pm

आदरणीय योगराज भाई,

 

//भावनायों को जिस संववेदनशीलता से शब्द दिए गए हैं कि मैं भी मंत्र-मुग्ध हूँ. इस कोमल से मगर प्रभावशाली रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकारें//

 

आपने यह कहकर इस रचना को जो मान दिया है, उसके लिए हृदयतल से आभार।

स्नेह बनाए रखें।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 

 

 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 15, 2014 at 2:27pm

भावनायों को जिस संववेदनशीलता से शब्द दिए गए हैं कि मैं भी मंत्र-मुग्ध हूँ. इस कोमल से मगर प्रभावशाली रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकारें

Comment by vijay nikore on July 4, 2013 at 12:23pm

आदरणीय सौरभ भाई :

 

किसी एक के प्रति भावनाओं की सच्चाई और सदभाव कभी उस सीमा को लांघ लेते हैं

जहाँ  "व्यक्त" इष्ट से भी ऊपर "अव्यक्त"-सा हो जाता है।

 

आपकी प्रतिक्रिया मेरे मन को संतुष्टि प्रदान कर रही है। धन्यवाद।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2013 at 12:02pm

व्यक्त से अव्यक्त को जानने की आभिलाषा सदा स्थूल के परे देखने को बाध्य करती है. इसके व्युत्क्रम को सापेक्ष देखना चौंकाता है.

रचनाकर्म के प्रति आपकी संवेदनशीलता संतुष्ट करती है, आदरणीय

सादर

Comment by vijay nikore on July 4, 2013 at 11:52am

आदरणीया अन्नपूर्णा जी:

 

// आपकी कविता मे बड़ा ही सुंदर शब्द समायोजन है मैं कविता की लय मे खो सी गई //

 

इन शब्दों से मुझको मान और संबल देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 

Comment by vijay nikore on July 4, 2013 at 11:43am

आदरणीय भाई लक्ष्मण जी:

 

// इसी क्रम में एक और यह सुन्दर रचना अभिव्यक्ति //

 

आपने मेरी रचनाओं को सदैव इतना स्नेह दिया है, मैं आपका

आभारी हूँ। आशा है, ऐसे ही मनोबल बढ़ाते रहेंगे।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on July 4, 2013 at 11:38am

आदरणीया सावित्री जी:

 

// अत्यंत मर्मस्पर्शी रचना,एक-एक शब्द अंतस को छूता हुआ सचमुच मंत्रमुग्ध कर दिया आपने .....//

 

मेरी भावाभिव्यक्ति के अनुमोदन से आपने मुझको संबल दिया है।

मेरा लेखन सार्थक हुआ। आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया।

 

सादर,

वि्जय निकोर

 

 

 

 

Comment by vijay nikore on July 4, 2013 at 11:30am

आदरणीय केवल प्रसाद जी:

 

//...अतिसुन्दर...मन छू  गई।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।  //

इतने सुन्दर शब्दों से सराहना करने के लिए आपका

हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on July 2, 2013 at 7:42am

आदरणीय कुंदन सिंह जी:

 

// आपकी शब्द शक्ति लाजवाब हैं। प्रकृति का चित्रण भी बखूबी किया गया है।//

 

कविता की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on July 2, 2013 at 7:26am

आदरणीया कुंती जी:

 

// प्रकृति की मानवीकरण ...की अति सुंदर रचना ...जैसे मन से उतरती नहीं ... //

 

मनोबल बढ़ाए रखने के लिए आपका शत-शत आभार, आदरणीया।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service