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’’वेगवती छन्द’’

इसमें विषम चरण में तीन सगण-(112) तथा एक गुरू-(2) तथा
सम चरण में तीन भगण-(211) तथा दो गुरू-(22) होते हैं।

.1.
कण कारक ज्यों मन कृष्णा। कारण कृष्ण कमाल सुतृष्णा।
जन.लोक अतीव नसाना। घोर. विरोध सजाय मसाना।।
जगती तल-अम्बर-वर्षा। बाढ़-हुताशन ज्यों यम हर्षा।
अब तो मन सोच सुकर्मा। कार्य सुहाय अघोर.विकर्मा।।


.2.
मन राम सुनाम विचारो। मानव से नित प्यार सॅवारो।
वन-बाग-सुभाष सुधारो। कर्म-सुधर्म  सदा मन धारो।।
रख हाथ मशाल जला री। सोच मना कित काम पधारी।
कर  याद  सुदर्शन धारी। दाह  करे  तम संकट  भारी।।


के0पी0 सत्यम/ मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by D P Mathur on June 22, 2013 at 8:08am

मैं लेखन की इस छन्द कला को ज्यादा नही समझता ,
परन्तु पढ़ने पर कुछ कुछ समझ आने लगा है ,
आपको बधाई !

Comment by coontee mukerji on June 22, 2013 at 1:31am

बहुत सुंदर  छ्न्द , आप हमारे ज्ञानकोष की वृद्धि कर रहे हैं  केवल जी , आभार / कुंती

Comment by बृजेश नीरज on June 21, 2013 at 4:13pm

एक नए छंद से परिचय कराने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय केवल जी!

Comment by Shyam Narain Verma on June 21, 2013 at 1:25pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

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