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गज़ल - तेरे मालिक से तो तेरा तलबगार अच्छा है

मांगने वाले से छीनने वाला हकदार अच्छा है 

हाल तो पूछ ही लिया चलो बीमार अच्छा है 

आज बोलता कुछ है कल कुछ और करता है 

शहर के सभी लोगों में तो कलाकार अच्छा है 

बड़ी आसानी से छुपा लेता वो दिल का ग़म 

लगता है महफिल का वो अदाकार अच्छा है 

बिन पाये दीवाना हूँ तो पाकर मर ही गया होता 

तेरे मालिक से तो तेरा तलबगार अच्छा है 

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Comment by वीनस केसरी on June 4, 2013 at 9:15pm

बड़ी आसानी से छुपा लेता वो दिल का ग़म 

लगता है महफिल का वो अदाकार अच्छा है 

बिन पाये दीवाना हूँ तो पाकर मर ही गया होता 

तेरे मालिक से तो तेरा तलबगार अच्छा है 

 

सुन्दर प्रयास है 
भविष्य के लिए शुभकामनाएं 

Comment by Yogendra Singh on June 3, 2013 at 10:12pm

अमन जी बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by Yogendra Singh on June 3, 2013 at 10:12pm

जितेंद्र जी आपका तहे दिल से शुक्रिया ।  

Comment by Yogendra Singh on June 3, 2013 at 10:12pm

बृजेश ही बहुत बहुत आभार 

Comment by Yogendra Singh on June 3, 2013 at 10:11pm

अनंत जी बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 2, 2013 at 11:56am
आदरणीय..योगेन्द्र जी, "आज बोलता कुछ है कल कुछ ओर करता है, शहर के सभी लोगों मे तो कलाकार अच्छा है "...बहुत ही उम्दा गज़ल, बहुत खूब..योगेन्द्र जी...शुभकामनायें
Comment by aman kumar on June 2, 2013 at 11:38am

बड़ी आसानी से छुपा लेता वो दिल का ग़म 

लगता है महफिल का वो अदाकार अच्छा है

मेरी ओर से बधाई!

Comment by बृजेश नीरज on June 2, 2013 at 9:08am

आपको इस सुंदर प्रयास पर मेरी ओर से बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 1, 2013 at 10:32pm

योगेन्द्र जी प्रयास बहुत ही सुन्दर बन पड़ा है, मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें. मित्रवर संदीप जी से सहमत हूँ एक अशआर और जोड़ दें.

Comment by Yogendra Singh on May 31, 2013 at 11:29pm

नीरज जी आपका आभार है 

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